राजनीति का अध्याय है जिस सीढ़ी से चढो उसको खींच लो ताकि उस्ताद नहीं चढ़ पाए…जनलोकपाल की पैरवी करने वाले अण्णा भी केजरी के माथे की ये थ्योरी नहीं पढ़ पाए…

देश की राजधानी को प्रदेश मानकर होने वाले विधानसभा चुनाव का नगाड़ा बज गया…प्रमुख पार्टियों का दफ्तर और मन , मानस झण्डे , बैनर , पोस्टर से सज गया…केजरीवाल के लुभावने वायदों से दिल्ली के मतदाताओं का मिज़ाज़ समझ आया…फिर क्या था उसके बाद तो हर राजनीतिक दलों को ये शगुफ़ा भाया…एक – एक कर सारी प्रमुख पार्टियों ने वोटर को आकर्षित करने की लालसा रखी…महिला मतदाता का आधिक्य देख उनको पहले कब्जे में लेने की लिप्सा रखी…

कोई 2100/-₹ तो कोई 2500/-₹ प्रतिमाह देने का कह रहा है…खजाने में कहां से राशि आएगी ये मध्यमवर्ग जानकर भी सह रहा है…देश में इस आचरण से सत्ता पाने में माहिर केजरीवाल प्रदेश को कंगाल करने पर आतुर है…अण्णा हजारे का हाथ थामकर राजनीति में आए इस नेता के मानस में अनेक फितुर है…राजनीति की पहली किताब का अध्याय है कि जिस सीढ़ी से ऊपर चढो उसको खींच लो ताकि उस्ताद नहीं चढ़ पाए…जनलोकपाल की पैरवी करने वाले अण्णा भी केजरी के माथे की ये थ्योरी नहीं पढ़ पाए…

भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर राजनीति को चुनने का ढोल पीटने वाला भ्रष्टाचार के दल-दल में धंस गया…अपनी खांसी व मफलर से लोकप्रिय हुआ तो शीशमहल के परदों के खर्चे में फंस गया…भारत में सत्ता आकर्षण और राजनीति के खेल बड़े निराले हैं…जिनके कपड़े धवल और विचार नवल हैं उनके चेहरे व चरित्र काले हैं…विश्वास के विश्वास को चीरकर सियासत पर काबिज तो हुए मगर अभिमान में सब भूल गए…कुर्सी की महिमा ऐसी है कि पहले कार्यकाल में ही खा पीकर गब्बर शेर की तरह फूल गए…फिर बिजली – पानी सहित मुफ्त में खैरात बांटने का खेला खेला…

दिल्ली की जनता ने गरीबों की फ़िक्रमन्दी में प्रलोभन का ये अभिशाप भी झेला…रिक्शे वालों को सेट करके राजनीति का तमाशा जारी हुआ…फिर क्या था अब तो अजमेर तक चादर भिजवाने का नाटक भारी हुआ…देश में जहाँ जहाँ तीसरी राजनीतिक शक्ति की उम्मीद दिखी वहाँ वहाँ हाथपैर मारे…भाजपा व कांग्रेस को नकारने वाले पंजाब की सफलता पर हो गए वारे न्यारे…अब निगाह हर तरफ अपनी ताकत बढ़ाने की है…पार्टियों की गंदगी साफ करने झाड़ू को सर पर चढ़ाने की है…विचारणीय तो ये है कि दिल्ली का दिल शराब के किस खेल में है…ऐसा क्या धनकुबेर बनने का शौक चढ़ा की आप जेल में है…

जिस पार्टी के सांसद तक को मुखिया का पीए बिन पिए धो दे…मीडिया के सामने अपना दुखड़ा सुनाते सुनाते नेता रो दे…उसकी महिमा देश से निकलकर विदेश में कदम रख रही है…अंतरराष्ट्रीय बनने के चक्कर में सत्ता अंडर वर्ल्ड के स्वाद चख रही है…दिल्ली के दिल को और देश को अब समझना होगा इस तरह के मंसूबों को…वरना लत लग जायेगी मुफ्त पाने की गांव गांव और सूबों को…बदलाव ही नहीं बल्कि ऐसे दलों से अलगाव भी जरूरी है…जिनके जिस्म में सत्ता का जहर और कुर्सी की भूख ही मजबूरी है…चुनाव आते हैं चले जाते हैं लोकतंत्र का यही एक पर्व है…देश की जनता अब समझदार हो रही है हमको प्रजातंत्र पर गर्व है…पांच साल मलाई खाने और चुनाव में आसमान के तारे दिखाने वालों पर नजर रखना चाहिए…जनता जनार्दन की अब बारी है हमारी गाढ़ी कमाई का खजाना खाली करने वालों को सबक सिखाइये…