स्वतंत्र समय, ग्वालियर
ग्वालियर-चंबल लोकसभा चुनाव ( Gwalior-Chambal Lok Sabha elections ) में तीन युवा इंजीनियरों की चर्चा है, ये तीन इंजीनियर लाखों का पैकेज छोडक़र राजनीति में किस्मत आजमा रहे हैं। भिंड लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी देवाशीष जरारिया के पास बीई और लॉ की डिग्री है। ग्वालियर से निर्दलीय चुनाव लड़ रहीं इंजीनियर अर्चना राजपूत दिल्ली में जॉब करने के बाद राजनीति में उतरी हैं। वहीं, मुरैना से निर्दलीय प्रत्याशी सूरज कुशवाह भी इंजीनियरिंग कर एक प्राइवेट कंपनी में लाखों की सैलरी पर जॉब में थे।
Gwalior-Chambal Lok Sabha elections में भिंड सीट पर 7 प्रत्याशी
ग्वालियर-चंबल लोकसभा चुनाव ( Gwalior-Chambal Lok Sabha elections ) में भिंड लोकसभा में इस बार सात प्रत्याशी मैदान में हैं। बीजेपी की संध्या राय और कांग्रेस के फूल सिंह बरैया के बीच मुख्य मुकाबले को बसपा के देवाशीष जरारिया ने त्रिकोणीय बना दिया है। जरारिया इस लोकसभा से पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी रह चुके हैं। उन्हें संध्या राय के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। टिकट कटने और संगठन में भी तवज्जो न मिलने से आहत जरारिया ने इस्तीफा देकर बसपा का दामन थाम लिया। अब वे बसपा प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं। भिंड सुरक्षित सीट है, जरारिया के उतरने से सीधा नुकसान कांग्रेस को हो रहा है। भिंड शहर में हर्ष बिहार त्रिमूर्तिनगर मेला ग्राउंड के पीछे रहने वाले देवाशीष जरारिया के पिता मुरार गर्ल्स कॉलेज में प्रोफेसर हैं। बता दें कि देवाशीष उनके इकलौते बेटे हैं। छोटी बहन की शादी हो चुकी है। इंजीनियरिंग और लॉ के बाद नौकरी की बजाय राजनीति में आने की वजह पूछने पर जरारिया ने बताया कि मैं अनुसूचित जाति वर्ग से आता हूं। पिता प्रोफेसर हैं, इस कारण मेरी पढ़ाई भी शुरू से अच्छी हुई। वह इंजीनियरिंग के बाद लॉ की पढ़ाई करने दिल्ली यूनिवर्सिटी चले गए। इस दौरान वह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे।इस वर्ग के लोगों के हक की आवाज अक्सर उठाते थे। साल 2017 में यूपी विधानसभा का चुनाव था। तब बसपा पहली बार सोशल मीडिया पर सक्रिय दिखी। बसपा का ट्विटर (अब ङ्ग) पहली बार ट्रेंड करते हुए दिखा। जरारिया ने बताया है कि लोकसभा चुनाव हारने के बाद पूरे पांच साल क्षेत्र में सक्रिय रहा। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता कह चुके थे कि तुम्हें लोकसभा ही लडऩा है। यही कारण था कि मैं विधानसभा में कहीं से टिकट नहीं मांगा, फिर अचानक मेरा टिकट काट दिया गया।
ग्वालियर लोकसभा सीट से युवा इंजीनियर अर्चना सिंह राठौड़
ग्वालियर-चंबल लोकसभा चुनाव ( Gwalior-Chambal Lok Sabha elections ) में ग्वालियर लोकसभा सीट से 19 प्रत्याशी मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला बीजेपी के भारत सिंह कुशवाह और कांग्रेस के प्रवीण पाठक के बीच है। पहली बार बीजेपी ने किसी ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े चेहरे को प्रत्याशी बनाया है। जबकि कांग्रेस ने इसके उलट शहर से प्रत्याशी दिया है। इन दोनों के अलावा यहां से अर्चना सिंह राजपूत भी चुनाव लड़ रही हैं। वे सभी प्रत्याशियों में सबसे कम उम्र की हैं। अर्चना के उतरने से सबसे अधिक नुकसान बीजेपी को हो रहा है। राजपूत समाज के साथ-साथ दूसरे समाज के लोगों का समर्थन अर्चना को मिल रहा है। शिवपुरी जिले में करैरा के नरही गांव की रहने वाली अर्चना सिंह के माता-पिता का निधन हो चुका है। छह बहनों में अर्चना चौथे नंबर की हैं। सबसे छोटा भाई भी इंजीनियरिंग के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहा है। अर्चना भी एक नामी कंपनी में इंजीनियर थीं। लाखों का सालाना पैकेज था।नौकरी छोडक़र राजनीति में आने की वजह बताई और कहा, मेरे पिता परमाल सिंह राठौर किसान थे।पूरे करैरा में लोग आज भी उनका सम्मान करते हैं। मेरे पापा ने मुझे एक बेटे की तरह पाला था। मुझसे बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है, लेकिन मुझे बचपन से ही समाज सेवा करना अच्छा लगता है। मैं दिल्ली में नौकरी के साथ-साथ बीमार लोगों की मदद भी करती थी। अर्चना ने बताया है कि मैं सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट से भी जुड़ी थी। मेरे सामाजिक सरोकार और सक्रियता को देखकर ही शायद मोदी जी की टीम ने मार्च 2024 में मेरे से संपर्क किया। कई राउंड के इंटरव्यू हुए। फिर मुझे आश्वस्त किया गया कि आपको ग्वालियर लोकसभा सीट से लड़ाया जाएगा। पार्टी को यहां किसी यंग चेहरे की तलाश थी। महिला होने की वजह से भी मुझे वरीयता मिलने का आश्वासन दिया गया था। उस टीम के कहे अनुसार मैं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, हितानंद, महेंद्र सिंह सोलंकी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, बीएल संतोष, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मिली, पर मुझे टिकट नहीं मिला।
सूरज कुशवाह आईटी कंपनी की नौकरी छोड़ चुनाव में उतरे
वहीं, मुरैना लोकसभा सीट से 15 प्रत्याशी मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला कांग्रेस के नीटू उर्फ सत्यपाल सिकरवार और बीजेपी के शिवमंगल सिंह के बीच है। बसपा के रमेश गर्ग मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं, पर चर्चा में युवा निर्दलीय प्रत्याशी सूरज कुशवाह हैं। उनके साथ युवाओं की एक टीम सक्रिय है। जोरगढ़ी अंगहोरा टेटरा के रहने वाले सूरज कुशवाह की शादी हो चुकी है। दिल्ली स्थित आईटी कंपनी की नौकरी छोडक़र राजनीति में उतरे हैं। ये उनका पहला चुनाव है। परिवार में कभी किसी ने कोई चुनाव नहीं लड़ा है। लाखों का पैकेज छोडक़र राजनीति में आने के सवाल पर सूरज ने बताया कि हर चुनाव में युवाओं को अनदेखा किया जाता है। कोई नेता रोजगार का साधन नहीं दे पाता है। इन नेताओं को नॉलेज ही नहीं है कि काम कैसे कराने चाहिए। यह तीनों युवा प्रत्याशी इस दौरान ग्वालियर-चंबल अंचल की राजनीति में काफी चर्चित है और इसका कारण यह है कि लाखों रुपये का पैकेज छोडक़र इन युवाओं ने राजनीति में कदम बढ़ाया है। अब देखना होगा की आने वाले नतीजे में इन युवाओं पर जनता ने कितना भरोसा जताया है।