ब्रह्माकुमारीज की पूर्व मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी की तृतीय आज पुण्यतिथि

दादी की याद में दिनभर चलेगी योग-तपस्या संस्थान के देशभर में स्थित सेवाकेंद्रों पर मनाई जाएगी पुण्यतिथि

राहुल जैन/ललितपुर- वरदानी भवन। ब्रह्माकुमारीज़ की पूर्व मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी की तीसरी पुण्यतिथि आज शनिवार को मनाई गई। दिनभर सेवाकेंद्र पर योग-तपस्या के कार्यक्रम चलें और दादी को पुष्पांजली अर्पित की गई एवं सभी भाई बहनों ने भी दादी को पुष्य अर्पित किए । हमारी प्यारी मीठी दादी जी को दिव्य दृष्टि का वरदान प्राप्त था। उन्होंने संस्थान के संस्थापक ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद 50 साल तक ब्रह्मा वत्सों के लिए परमात्म संदेशवाहक की भूमिका निभाई। आध्यात्मिक जीवन में कैसे योग-तपस्या की गहराई में जाएं और राजयोग की गहन अनुभूति को कैसे जीवन में शामिल करें आदि बातों को लेकर आपने अव्यक्त वाणियों के माध्यम से जन-जन का मार्गदर्शन किया। जीवन सादगी, सरलता, दिव्यता और पवित्रता की मिसाल था। यही कारण है कि लाखों ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी आपके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में उतारने के प्रयास करते हैं।

दादी जी की जीवन यात्रा पर एक नजर…
दादी हृदयमोहिनी के बचपन का नाम शोभा था। आपका जन्म वर्ष 1928 में कराची में हुआ था। आप जब 8 वर्ष की थी तब संस्था के साकार संस्थापक ब्रह्मा बाबा द्वारा खोले गए ओम निवास बोर्डिंग स्कूल में दाखिला लिया। यहां आपने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की। स्कूल में बाबा और मम्मा (संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका) के स्नेह, प्यार और दुलार से प्रभावित होकर अपना जीवन उनके समान बनाने का निश्चय किया। आपकी लौकिक मां की भक्ति भाव से परिपूर्ण थीं।

मात्र चौथी कक्षा तक की थी पढ़ाई-
दादी हृदयमोहिनी ने मात्र चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की थी। लेकिन तीक्ष्ण बुद्धि होने से आप जब भी ध्यान में बैठतीं तो शुरुआत के समय से ही दिव्य अनुभूतियां होने लगीं। यहां तक कि आपको कभी बार ध्यान के दौरान दिव्य आत्माओं के साक्षात्कार हुए, जिनका जिक्र उन्होंने ध्यान के बाद ब्रह्मा बाबा और अपनी साथी बहनों से भी किया।

शांत, गंभीर और गहन व्यक्तित्व की प्रतिमूर्ति-
दादी हृदयमोहिनी की सबसे बड़ी विशेषता थी उनका गंभीर व्यक्तित्व। बचपन में जहां अन्य बच्चे स्कूल में शरारतें करते और खेल-कूद में दिलचस्पी के साथ भाग लेते थे, वहीं आप गहन चिंतन की मुद्रा में हमेशा रहतीं। धीरे-धीरे उम्र के साथ जब आप मात्र 9 वर्ष की थीं तब से आपको दिव्य लोक की अनुभूति होने लगी। आपकी बुद्धि की लाइन इतनी साफ और स्पष्ट थी कि ध्यान में जब आप खुद को आत्मा समझकर परमात्मा का ध्यान करतीं तो उन्हें यह आभास ही नहीं रहता था कि वह इस जमीन पर हैं।

सादगी, सरलता और सौम्यता की थीं मिसाल-
दादी का पूरा जीवन सादगी, सरलता और सौम्यता की मिसाल रहा। बचपन से ही विशेष योग-साधना के चलते दादी का व्यक्तित्व इतना दिव्य हो गया था कि उनके संपर्क में आने वाले लोगों को उनकी तपस्या और साधना की अनुभूति होती थी। उनके चेहरे पर तेज का आभामंडल उनकी तपस्या की कहानीं साफ बयां करता था।
सभी बीके भाई-बहन उपस्थित रहे एवं ब्रह्मा भोजन स्वीकार कराया गया।