मध्य प्रदेश समेत देशभर में तुअर (अरहर) दाल की कीमतों में आई तेजी ने आम आदमी के किचन का बजट बिगाड़ दिया है। राजधानी भोपाल के खुदरा बाजारों में अच्छी क्वालिटी की तुअर दाल 160 से 180 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक रही है। वहीं, थोक में भी इसके दाम 140 से 150 रुपये किलो बने हुए हैं। कीमतों में इस उछाल का एक दूसरा पहलू भी है, जो किसानों के लिए उम्मीद लेकर आया है।
मंडियों में किसानों को कच्ची तुअर का भाव 10,000 से 11,000 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है, जो सरकार द्वारा तय 7,000 रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से काफी अधिक है। इस भारी मुनाफे को देखते हुए राज्य के छोटे और मझोले किसानों ने आगामी खरीफ सीजन में तुअर की खेती का रकबा बढ़ाने की तैयारी शुरू कर दी है।
क्यों आसमान पर हैं दाल के दाम?
विशेषज्ञों के अनुसार, कीमतों में इस अभूतपूर्व तेजी की मुख्य वजह पिछले साल उत्पादन में आई कमी है। देश के प्रमुख तुअर उत्पादक राज्यों जैसे महाराष्ट्र और कर्नाटक में मानसून कमजोर रहने के कारण फसल बुरी तरह प्रभावित हुई थी। इसके चलते मांग और आपूर्ति के बीच एक बड़ा अंतर पैदा हो गया, जिसका सीधा असर कीमतों पर दिखाई दे रहा है।
किसानों के लिए मुनाफे का सौदा
ऊंची कीमतों ने किसानों को तुअर की खेती के लिए प्रोत्साहित किया है। कई किसान, जो पहले दूसरी फसलें लगाते थे, अब तुअर की बुवाई की योजना बना रहे हैं। वे खरीफ सीजन के लिए अपने खेतों को तैयार करने में जुट गए हैं। पूर्व कृषि संचालक डॉ. जी.एस. कौशल के मुताबिक, जब किसानों को किसी फसल का अच्छा दाम मिलता है, तो स्वाभाविक रूप से उनका रुझान उस ओर बढ़ता है। उन्होंने किसानों को बेहतर पैदावार के लिए अच्छी किस्म के बीजों का चयन करने और वैज्ञानिक तकनीक अपनाने की सलाह दी है।
सरकार की नियंत्रण की कोशिशें
बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार भी सक्रिय है। सरकार ने तुअर को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे में रखा है और जमाखोरी रोकने के लिए स्टॉक की लगातार निगरानी कर रही है। इसके अलावा, घरेलू बाजार में आपूर्ति बढ़ाने के लिए मोजाम्बिक और अन्य अफ्रीकी देशों से तुअर का आयात किया जा रहा है। सरकार ने 31 मार्च, 2025 तक तुअर के आयात को शुल्क मुक्त भी रखा है।
मानसून पर टिका है भविष्य का बाजार
बाजार के जानकारों का मानना है कि तुअर दाल की कीमतों में तत्काल राहत की उम्मीद कम है। नई फसल आने में अभी वक्त लगेगा, जो आमतौर पर दिसंबर-जनवरी तक बाजार में पहुंचती है। इस साल किसानों के उत्साह को देखते हुए तुअर का रकबा बढ़ने की पूरी संभावना है। यदि मानसून अच्छा रहता है और फसल की पैदावार उम्मीद के मुताबिक होती है, तो नई फसल आने के बाद ही कीमतों में नरमी आ सकती है। तब तक उपभोक्ताओं को ऊंची कीमतों का सामना करना पड़ सकता है।