Trump: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। उन्होंने 1 अगस्त 2025 से भारत से आने वाले निर्यात उत्पादों पर 25 प्रतिशत का बेस टैरिफ और एक अतिरिक्त जुर्माना लगाने की घोषणा की है। यह निर्णय न केवल भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार संतुलन पर भी असर डाल सकता है।
भारत बनाम विश्व: Trump टैरिफ के संदर्भ में भारत की स्थिति
ट्रंप की इस घोषणा के बाद भारत उन कुछ एशियाई देशों में शामिल हो गया है जिन पर अमेरिका ने सबसे ज्यादा टैरिफ लगाए हैं। वर्तमान विश्लेषण के अनुसार, भारत पर लगाया गया टैरिफ वियतनाम, इंडोनेशिया, जापान, फिलीपींस और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख व्यापारिक भागीदारों की तुलना में अधिक है।
हालांकि भारत पर लगाया गया 25% बेस टैरिफ ब्राज़ील (50%), म्यांमार और लाओस (40%) जैसे कुछ देशों से कम है, लेकिन अतिरिक्त जुर्माने के साथ भारत की प्रभावी टैरिफ दर दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे देशों से भी अधिक हो सकती है, जिन पर फिलहाल फ्लैट 25% शुल्क लागू है।
Trump का तर्क: ‘मित्रता के बावजूद व्यापार सीमित’
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर कहा, “भारत हमारा मित्र है, लेकिन उनके अधिकतर टैरिफ दुनिया में सबसे ऊंचे हैं, और गैर-टैरिफ बाधाएं व्यापार को और भी कठिन बनाती हैं।” उन्होंने भारत के रूस के साथ रणनीतिक रक्षा और ऊर्जा संबंधों को भी इस निर्णय का प्रमुख कारण बताया।
व्यापार पर प्रभाव: किन क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा असर?
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में बीते दशक में तेजी आई है। UN COMTRADE के आंकड़ों के अनुसार, 2013 में जहां दोनों देशों के बीच व्यापार $64.6 बिलियन था, वहीं 2024 तक यह बढ़कर $118.4 बिलियन हो गया। इसमें सबसे बड़ा योगदान निर्यात का रहा है, जो $42 बिलियन से बढ़कर $79.4 बिलियन हो गया।
अब, जब यह नया टैरिफ लागू होगा, तो रसायन, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्सटाइल जैसे उच्च-विकास वाले क्षेत्रों पर इसका गहरा असर पड़ सकता है। इससे भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना महंगा और कठिन हो जाएगा।
आगे की राह: क्या होगा भारत का रुख?
भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह घरेलू किसानों, MSMEs और उद्योगपतियों के हितों की रक्षा करेगा, साथ ही अमेरिका के साथ एक संतुलित और परस्पर लाभकारी व्यापार समझौते की दिशा में बातचीत जारी रखेगा। लेकिन बढ़ते टैरिफ और रणनीतिक दबावों के बीच यह राह आसान नहीं होगी।