टैरिफ बढ़ाने वाले ट्रंप की सरकार कंगाल, आखिर क्यों हुआ शटडाउन?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दुनियाभर के देशों पर भारी टैरिफ लगाने के फैसले का असर अब अमेरिका की अपनी अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा है। सरकार इस समय वित्तीय संकट से जूझ रही है और हालात इतने बिगड़ गए हैं कि शटडाउन की नौबत आ गई है। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सांसद बजट पर सहमति बनाने में असफल रहे, जिसके कारण 1 अक्टूबर से सरकारी कामकाज का बड़ा हिस्सा ठप हो गया है। इस गतिरोध ने लाखों कर्मचारियों और आम नागरिकों की ज़िंदगी पर सीधा असर डाला है।

शटडाउन क्या होता है?

अमेरिका में वित्तीय वर्ष की शुरुआत हर साल 1 अक्टूबर से होती है। अगर संसद यानी सीनेट से फंडिंग बिल पास नहीं होता तो सरकार को कई विभागों का खर्च रोकना पड़ता है। इसे ही “शटडाउन” कहा जाता है। इस दौरान आवश्यक सेवाएं सीमित हो जाती हैं और गैर-जरूरी कामकाज ठप पड़ जाता है।

असली वजह: मेडिकेड और हेल्थकेयर फंडिंग पर टकराव

इस बार शटडाउन की मुख्य वजह हेल्थकेयर सब्सिडी और मेडिकेड फंडिंग को लेकर राजनीतिक मतभेद है। रिपब्लिकन पार्टी मेडिकेड पर खर्च कम करना चाहती है, जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी गरीबों और बुजुर्गों को दी जाने वाली सब्सिडी बढ़ाने पर जोर दे रही है। समझौते की कमी के चलते खर्च संबंधी बिल पास नहीं हो सका।

संसद में वोटिंग क्यों फेल हुई?

फंडिंग बिल पास करने के लिए 60 वोट ज़रूरी थे, लेकिन ट्रंप की पार्टी को सिर्फ 55 वोट मिल सके। वहीं 47 वोट बिल के खिलाफ पड़े। सीनेट के 100 सदस्यों में 53 रिपब्लिकन, 47 डेमोक्रेट्स और 2 निर्दलीय सांसद हैं। इस नतीजे से स्पष्ट है कि विपक्ष की असहमति ने बिल को रोक दिया। उल्लेखनीय है कि साल 2018 में भी इसी तरह के हालात बने थे, जब अमेरिका-मैक्सिको बॉर्डर वॉल के लिए फंडिंग न मिलने से शटडाउन 35 दिनों तक चला था।

किन सेक्टरों पर पड़ा शटडाउन का असर?

सरकारी कर्मचारी सबसे ज्यादा प्रभावित: करीब 40% यानी 7.5 लाख कर्मचारियों को वेतन रहित छुट्टी (फर्लो) पर भेजा गया है। जबकि सुरक्षा, सीमा नियंत्रण और अस्पताल स्टाफ जैसे जरूरी कर्मचारी काम तो करेंगे लेकिन वेतन शटडाउन खत्म होने के बाद ही मिलेगा।

  • रक्षा और स्वास्थ्य विभाग: रक्षा विभाग में 3.34 लाख कर्मचारी प्रभावित हुए हैं। स्वास्थ्य विभाग, विदेश मंत्रालय और वाणिज्य विभाग में भी हजारों कर्मचारी छुट्टी पर हैं।
  • नासा और अनुसंधान संस्थान: नासा के 15,000 से अधिक कर्मचारी और वैज्ञानिक कार्य से बाहर हो गए हैं। सीडीसी और एनआईएच जैसे संस्थानों के कई प्रोजेक्ट रुक गए हैं।
  • हवाई यात्रा: एयरपोर्ट पर TSA एजेंट और एयर ट्रैफिक कंट्रोलर बिना वेतन काम करने को मजबूर हैं, जिससे यात्रियों को लंबी कतारों और देरी का सामना करना पड़ सकता है। पासपोर्ट सेवाओं में भी देरी की आशंका है।
  • राष्ट्रीय उद्यान और संग्रहालय: स्टाफ की कमी के कारण राष्ट्रीय उद्यान और स्मारकों की सुरक्षा पर खतरा बढ़ गया है। वॉशिंगटन का नेशनल ज़ू और स्मिथसोनियन संग्रहालय 6 अक्टूबर तक खुले रहेंगे, लेकिन कई सुविधाएं सीमित कर दी गई हैं।
  • स्वास्थ्य और गरीबों की योजनाएं: मेडिकेयर और मेडिकेड जैसी योजनाएं फिलहाल जारी रहेंगी, लेकिन फंड की कमी से WIC और SNAP जैसी योजनाओं पर खतरा मंडरा रहा है। लंबा शटडाउन FEMA जैसी आपदा राहत एजेंसियों को भी प्रभावित कर सकता है।
  • डाक सेवा अप्रभावित: अमेरिकी डाक सेवा सामान्य रूप से काम करती रहेगी क्योंकि यह संस्था टैक्स से नहीं बल्कि अपनी सेवाओं और उत्पादों से चलती है।

सांसदों की सैलरी पर नहीं होगा असर

दिलचस्प बात यह है कि जब लाखों कर्मचारी बिना वेतन घर बैठने को मजबूर हैं, तब अमेरिकी सांसदों की तनख्वाह पर कोई असर नहीं पड़ेगा। संविधान के प्रावधानों के तहत उन्हें भुगतान जारी रहेगा, जिस पर जनता और विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

विशेषज्ञों का मानना है कि इस शटडाउन का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर बड़ा झटका तो नहीं लगेगा, लेकिन डॉलर कमजोर हो सकता है। इससे भारत जैसे उभरते बाजारों को फायदा मिलेगा, क्योंकि निवेशक वैकल्पिक सुरक्षित बाजारों की तलाश करेंगे। यानी जहां अमेरिका के लिए यह संकट है, वहीं भारत जैसे देशों के लिए अवसर बन सकता है।