इंदौर में 71 करोड़ के आबकारी घोटाले में दो शराब ठेकेदार को किया गिरफ्तार, अधिकारी भी जांच के घेरे में

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बड़े पैमाने पर आबकारी घोटाले की जांच शुरू कर दी है। यह घोटाला फर्जी बैंक चालानों के माध्यम से किया गया, जिसमें कुल 71 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई। इस मामले के दो मुख्य आरोपित अंश त्रिवेदी और राजू दशवंत को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया है। दोनों को कोर्ट ने आठ अक्टूबर तक रिमांड पर ईडी को सौंप दिया है, ताकि जांच पूरी तरह से की जा सके।

2017 में घोटाले का खुलासा

यह मामला 2017 में तब सामने आया था, जब स्थानीय पुलिस ने शराब ठेकेदार अंश त्रिवेदी और राजू दशवंत के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी। उस समय जांच में यह भी पता चला कि कुछ आबकारी अधिकारी इस घोटाले में शामिल थे। हालांकि, पुलिस ने उस समय पर्याप्त कार्रवाई नहीं की। अब मनी लॉन्ड्रिंग के नए सबूत मिलने के बाद ईडी ने इस प्रकरण को प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत दर्ज किया और जांच आरंभ कर दी है।

ठेकेदारों की भूमिका

अंश त्रिवेदी ने शासन से तीन शराब दुकानों का संचालन करने के लिए ठेका लिया था। जांच में पता चला कि इन दुकानों के संचालन और शराब खरीद के लिए खजाने में जमा किए गए बैंक चालानों में बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई। चालानों में कम राशि दिखाने के लिए शून्य या अन्य अंक जोड़कर लाखों रुपये की गड़बड़ी की गई। इस तरह ठेका अवधि में करीब 71 करोड़ रुपये की राशि में हेराफेरी हुई।

आबकारी अधिकारियों की संलिप्तता

जांच के दौरान आरोपितों ने तत्कालीन सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे और सहायक जिला आबकारी अधिकारी सुखनंदन पाठक का नाम लिया। त्रिवेदी ने खुलासा किया कि अगर दुकान में घाटा होता, तो वह दुकान छोड़ देना चाहता था। लेकिन आबकारी अधिकारियों ने राजू दशवंत को भेजा और कहा कि वही दुकान चलाएगा। इसके अलावा, दुकानों की कमाई में अधिकारियों का भी हिस्सा था।

ईडी जांच और संभावित आगे की कार्रवाई

अब ईडी ने PMLA के तहत केस दर्ज कर विस्तृत जांच शुरू कर दी है। शुरुआती जांच में दो प्रमुख आरोपी ही गिरफ्तार हुए हैं, लेकिन संभावना है कि आगे और लोगों को भी इस मामले में आरोपित बनाया जा सकता है। आबकारी विभाग के वे अधिकारी, जो पुलिस जांच में बच गए थे, अब ईडी की जांच के दायरे में आ सकते हैं।