Udaipur Files को सेंसर बोर्ड से मिले 150 कट, रिलीज़ पर उठे कानूनी और सामाजिक सवाल

हाल ही में चर्चित फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ (Udaipur Files) को लेकर देशभर में तीखी बहस छिड़ गई है। इस फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) ने रिलीज़ से पहले लगभग 150 कट लगाने का आदेश दिया है। यह निर्णय न केवल फिल्म निर्माताओं के लिए एक बड़ा झटका है, बल्कि इससे देशभर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सेंसरशिप और धार्मिक संवेदनशीलता जैसे मुद्दों पर भी गंभीर चर्चा शुरू हो गई है।

क्या है ‘Udaipur Files’?

‘उदयपुर फाइल्स’ एक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है, जो उदयपुर में हुई कन्हैयालाल की नृशंस हत्या के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में इस घटना के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक पहलुओं को उजागर करने की कोशिश की गई है। निर्देशक का दावा है कि यह फिल्म “सच्चाई को उजागर करने वाली दस्तावेज़ी प्रस्तुति” है, जो समाज को झकझोरने का कार्य करती है।

Udaipur Files: सेंसर बोर्ड की आपत्तियाँ

CBFC ने फिल्म के कई दृश्यों और संवादों पर आपत्ति जताते हुए 150 से अधिक कट लगाने का आदेश दिया है। इनमें कुछ संवेदनशील दृश्य, धार्मिक संदर्भ और राजनीतिक टिप्पणियाँ शामिल हैं, जिन्हें बोर्ड ने समाज की शांति और एकता के लिए हानिकारक माना है। बोर्ड का कहना है कि इन कट्स का उद्देश्य सामाजिक सौहार्द बनाए रखना है।

कानूनी विवाद और जन प्रतिक्रिया

फिल्म निर्माताओं ने सेंसर बोर्ड के फैसले को “अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला” बताया है और इस आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है। फिल्म के निर्देशक ने कहा, “हमने कोई झूठ नहीं दिखाया है। सच्चाई को दिखाना अगर अपराध है, तो हम बार-बार ऐसा अपराध करेंगे।”

दूसरी ओर, कई सामाजिक संगठनों और नागरिक समूहों ने फिल्म की रिलीज़ को लेकर चिंता जताई है। उनका मानना है कि इस प्रकार की फिल्में धार्मिक विद्वेष को बढ़ावा दे सकती हैं और समाज में तनाव फैला सकती हैं।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक ज़िम्मेदारी

यह मुद्दा एक बार फिर इस सवाल को जन्म देता है कि क्या कलाकारों और फिल्म निर्माताओं को पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए, या फिर उन्हें सामाजिक और सांस्कृतिक मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए। जबकि कुछ लोग इसे रचनात्मक स्वतंत्रता के खिलाफ सेंसरशिप मानते हैं, वहीं कुछ लोग इसे समाज की शांति बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम मानते हैं।