उज्जैन महाकाल मंदिर: भस्म आरती में RFID बैंड से प्रवेश 20 दिन में ही बंद, कालाबाजारी के आरोपों के बाद पुरानी व्यवस्था बहाल

विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती दर्शन के लिए लागू की गई हाई-टेक RFID बैंड प्रणाली को महज 20 दिनों के भीतर ही बंद कर दिया गया है। मंदिर प्रबंध समिति ने श्रद्धालुओं को हो रही परेशानियों, तकनीकी खामियों और अव्यवस्था की लगातार शिकायतों के बाद यह बड़ा फैसला लिया है। इस निर्णय के साथ ही मंदिर में प्रवेश की पुरानी मैन्युअल व्यवस्था को फिर से बहाल कर दिया गया है।

मंदिर प्रशासन ने लगभग 20 दिन पहले भस्म आरती में होने वाली भीड़ को नियंत्रित करने और अनधिकृत प्रवेश को रोकने के उद्देश्य से यह नई तकनीक अपनाई थी। लेकिन यह प्रणाली उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी और फायदे से ज्यादा परेशानी का कारण बन गई।

क्यों शुरू की गई थी RFID प्रणाली?

महाकाल मंदिर की भस्म आरती में शामिल होना देश-विदेश के लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक अनूठा अनुभव होता है। सीमित संख्या के कारण इसकी अनुमति मिलना बेहद कठिन होता है, जिसके चलते अक्सर दलालों द्वारा अनुमति की कालाबाजारी की शिकायतें सामने आती थीं। इसी समस्या से निपटने और प्रवेश व्यवस्था को पूरी तरह पारदर्शी व सुरक्षित बनाने के लिए मंदिर समिति ने बेंगलुरु की एक निजी कंपनी के माध्यम से RFID (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन) बैंड प्रणाली शुरू की थी।

इस व्यवस्था के तहत, जिन श्रद्धालुओं को ऑनलाइन या ऑफलाइन माध्यम से भस्म आरती की अनुमति मिलती थी, उन्हें काउंटर से एक RFID बैंड दिया जाता था। मंदिर के प्रवेश द्वार पर विशेष मशीनें लगाई गई थीं, जो इस बैंड को स्कैन करती थीं। स्कैन सफल होने पर ही गेट खुलता था, जिससे केवल अधिकृत श्रद्धालु ही प्रवेश कर सकते थे। इसका मुख्य लक्ष्य किसी भी तरह के मानवीय हस्तक्षेप को खत्म करना और व्यवस्था को foolproof बनाना था।

20 दिनों में ही क्यों फेल हो गई नई तकनीक?

यह आधुनिक प्रणाली अपनी शुरुआत से ही कई चुनौतियों से घिरी रही। सबसे बड़ी समस्या तकनीकी खामियों के रूप में सामने आई। कई बार प्रवेश द्वार पर लगी मशीनें श्रद्धालुओं के बैंड को ठीक से स्कैन नहीं कर पाती थीं। इस वजह से गेट के बाहर श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लग जाती थीं और अफरा-तफरी का माहौल बन जाता था।

इसके अलावा, व्यवस्था का संचालन कर रही निजी कंपनी के कर्मचारियों पर श्रद्धालुओं के साथ दुर्व्यवहार करने के भी गंभीर आरोप लगे। लेकिन सबसे चिंताजनक बात यह थी कि जिस कालाबाजारी को रोकने के लिए यह सिस्टम लाया गया था, उसी RFID बैंड की ही कालाबाजारी शुरू होने की शिकायतें मिलने लगीं। कुछ लोगों द्वारा पैसे लेकर अनधिकृत व्यक्तियों को बैंड उपलब्ध कराने के आरोप सामने आए, जिसने इस पूरी व्यवस्था के उद्देश्य पर ही सवाल खड़ा कर दिया।

इन तमाम शिकायतों को देखते हुए मंदिर प्रशासक संदीप कुमार सोनी ने मामले का संज्ञान लिया। मंदिर प्रबंध समिति ने पाया कि नई व्यवस्था श्रद्धालुओं के लिए सुविधा की जगह असुविधा बन गई है, जिसके बाद इसे तत्काल प्रभाव से बंद करने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया। अब पुरानी व्यवस्था के तहत, श्रद्धालु अपने अनुमति पत्र और वैध पहचान पत्र दिखाकर प्रवेश कर सकेंगे, जिसकी जांच गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मी करेंगे।