मध्य प्रदेश सरकार के एक अहम फैसले ने उज्जैन के सिंहस्थ क्षेत्र में रहने वाले किसानों को बड़ी राहत दी है। सरकार ने सिंहस्थ आयोजन के लिए जमीनों के स्थाई अधिग्रहण हेतु लागू किए गए लैंड पूलिंग एक्ट को वापस लेने का निर्णय लिया है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग की ओर से इस संबंध में आधिकारिक आदेश जारी कर दिए गए हैं। जैसे ही यह खबर क्षेत्र में फैली, किसानों के बीच लंबे समय से बनी चिंता और असमंजस की स्थिति कुछ हद तक खत्म होती नजर आई।
यह फैसला अचानक नहीं लिया गया, बल्कि इसके पीछे महीनों से चल रहा किसान आंदोलन और राजनीतिक दबाव रहा है। सिंहस्थ क्षेत्र के किसान लगातार इस कानून का विरोध कर रहे थे और इसे अपनी जमीन व भविष्य के लिए खतरा बता रहे थे। धरना-प्रदर्शन, ज्ञापन और जनप्रतिनिधियों के माध्यम से आवाज उठाने का असर आखिरकार सरकार तक पहुंचा। सरकार ने भी जनभावनाओं को देखते हुए अपने निर्णय पर पुनर्विचार किया और अब इस एक्ट को वापस लेने का कदम उठाया है।
दरअसल, उज्जैन में होने वाले आगामी सिंहस्थ कुंभ को लेकर बड़े पैमाने पर विकास कार्य और बुनियादी ढांचे के विस्तार की योजना बनाई जा रही थी। इसके लिए सरकार को बड़ी मात्रा में भूमि की आवश्यकता थी, जिसके चलते लैंड पूलिंग एक्ट को लागू किया गया। इस कानून के तहत किसानों की जमीनों का स्थाई अधिग्रहण प्रस्तावित था। लेकिन किसानों के लिए यह अपनी पुश्तैनी जमीनों से हमेशा के लिए हाथ धो लेने जैसा था, जिसे वे किसी भी कीमत पर स्वीकार करने को तैयार नहीं थे।
किसानों का कहना था कि स्थाई अधिग्रहण से उनकी आजीविका पर सीधा असर पड़ेगा। खेत ही उनकी रोजी-रोटी का एकमात्र साधन हैं और पीढ़ियों से वे इन्हीं जमीनों पर निर्भर रहे हैं। भारतीय किसान संघ ने इस मुद्दे को मजबूती से उठाया और लगातार आंदोलन किया। संगठन का स्पष्ट तर्क था कि सिंहस्थ एक अस्थायी धार्मिक आयोजन है, जो कुछ समय के लिए होता है, ऐसे में इसके लिए जमीनों का स्थाई अधिग्रहण पूरी तरह अनुचित और अन्यायपूर्ण है।
इस पूरे मामले में दबाव सिर्फ किसान संगठनों का ही नहीं था, बल्कि सत्ता पक्ष के स्थानीय विधायकों का भी रहा। कई विधायकों ने मुख्यमंत्री और नगरीय विकास विभाग के मंत्रियों से सीधे तौर पर इस एक्ट को लेकर नाराजगी जताई थी। उनका कहना था कि उनके क्षेत्रों में जनता इस फैसले से बेहद असंतुष्ट है और यदि इसे वापस नहीं लिया गया, तो इसका राजनीतिक नुकसान भी हो सकता है। किसानों और विधायकों के संयुक्त दबाव ने सरकार को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
नगरीय विकास एवं आवास विभाग द्वारा जारी आदेश में साफ किया गया है कि अब सिंहस्थ क्षेत्र में लैंड पूलिंग की प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई है। इससे क्षेत्र के हजारों किसान परिवारों ने राहत की सांस ली है। कई किसानों का कहना है कि लंबे समय बाद सरकार ने उनकी पीड़ा को समझा है और उनकी जमीनों के अधिकार की रक्षा की है।
लैंड पूलिंग एक्ट की बात करें तो इस नीति के तहत सरकार विकास कार्यों के लिए भू-स्वामियों से जमीन लेती है और बाद में विकसित जमीन का एक हिस्सा उन्हें लौटाया जाता है। हालांकि, सिंहस्थ क्षेत्र के किसान इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे। वे चाहते थे कि उनकी जमीनों का मालिकाना हक पूरी तरह उनके पास ही रहे। किसानों का सुझाव था कि सिंहस्थ के दौरान वे पहले की तरह अपनी जमीनें अस्थायी रूप से प्रशासन को देने के लिए तैयार हैं, लेकिन स्थाई अधिग्रहण उन्हें स्वीकार नहीं।
सरकार के इस यू-टर्न के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आगामी सिंहस्थ के लिए जमीन की व्यवस्था कैसे की जाएगी। फिलहाल किसानों को राहत जरूर मिली है, लेकिन प्रशासन के सामने यह चुनौती बनी हुई है कि बिना स्थाई अधिग्रहण के सिंहस्थ जैसे विशाल आयोजन के लिए जरूरी संसाधन और स्थान कैसे जुटाए जाएंगे। आने वाले दिनों में इस पर नई रणनीति सामने आने की उम्मीद है।