UltraTech सीमेंट का कारनामा : 70 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा

स्वतंत्र समय, भोपाल

सतना जिले के मैहर में स्थापित मैहर सीमेंट अब अल्ट्राटेक ( UltraTech ) के नाम से जानी जाती है। मप्र सरकार ने मैहर में कंपनी को 99 साल की लीज पर वर्ष 1975 में 193.1867 हेक्टेयर भूमि दी थी, लेकिन कंपनी ने करीब 22 साल पहले 70 एकड़ फॉरेस्ट भूमि पर कब्जा कर कॉलोनी, कॉलेज, आवासीय कॉलोनी, अस्पताल और बाजार का निर्माण करवा लिया। कंपनी द्वारा किए गए 70 एकड़ सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे की तरफ किसी भी अफसर ने ध्यान नहीं दिया। अब सरकार चेती तो छोटे अधिकारियों पर गाज गिरी।

मैहर सीमेंट का नाम अब UltraTech हो गया

वन मंडल सतना के वन परिक्षेत्र मैहर अंतर्गत मैहर सीमेंट औद्योगिक संस्था जिसका बाद में नाम बदलकर अल्ट्राटेक ( UltraTech ) हो गया है। इसे सरकार ने सीमेंट प्लांट स्थापित करने के लिए वर्ष 1975 में 99 साल की लीज पर 193.1867 हेक्टेयर भूमि आवंटित की थी। संस्था द्वारा स्वीकृत भूखंड सीमा से बाहर वनभूमि के वन कक्ष पी-555 में रकबा 27.9 हेक्टेयर अर्थात 70 एकड़ सरकारी भूमि पर कब्जा करते हुए कॉलोनी, कॉलेज, आवासीय कॉलोनी, अस्पताल और बाजार आदि का निर्माण करवा लिया। संस्था ने 2002 में सरकारी जमीन पर अवैध अतिक्रमण कर ये निर्माण कार्य कराए गए थे। यानि सरकारी जमीन पर कॉलोनी, कॉलेज, आवासीय कॉलोनी, अस्पताल और बाजार का निर्माण होने के बावजूद इसकी भनक न तो तत्कालीन सतना कलेक्टर को लगी और न ही सतना के डीएफओ, सीएफ को। जब ये मामला विधायक ने सदन में उठाया तो फॉरेस्ट अफसरों ने आनन-फानन में 24 फरवरी 2024 को वन अपराध में प्रकरण पंजीबद्ध किया।

छोटे अफसरों पर गिरी गाज

ये मामला विधानसभा में उठने के बाद सरकार चेती और बड़े अफसरों जैसे तत्कालीन सतना कलेक्टर, डीएफओ, सीएफ को बचाते हुए छोटे अधिकारियों को निलंबित कर दिया। वन विभाग ने 31 मई 2024 को जारी आदेश में प्रभारी उप वनमंडलाधिकारी यशपाल मेहरा और एक रेंजर को निलंबित किया है।

शासन को पता चला तब कार्रवाई की

तत्कालीन समय में अफसरों ने शासन को इसकी कोई जानकारी नहीं दी। विधानसभा में ये मामला उठा तो सरकार के ध्यान में आया। जैसे ही मामला सरकार के नालेज में आया उप वनमंडलाधिकारी सहित एक रेंजर को निलंबित किया गया है। इसकी जानकारी फील्ड में पदस्थ अफसरों को बताना चाहिए था।
-जेएन कंसोटिया, एसीएस, वन विभाग

किसी भी अफसर ने नहीं की कोई कार्रवाई

संस्था द्वारा किया गया सरकारी जमीन पर अवैध अतिक्रमण का मामला 2002 का है और 22 साल गुजर जाने के बाद भी इस अतिक्रमण के संबंध में जिले में पदस्थ रहे कलेक्टर, डीएफओ, सीएफ आदि ने न तो तत्कालीन समय में कोई कार्रवाई की और न ही बाद में। इससे स्पष्ट होता है कि करोड़ों की सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को कराने में अफसरों की भूमिका की जांच होनी चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि 70 एकड़ सरकारी जमीन निजी संस्था कंपनी द्वारा कब्जा कर लेने के पीछे अफसरों की कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में है।