इस राज्य में बदलेगी बिजली व्यवस्था, लखनऊ, नोएडा और गाजियाबाद में लागू होगा नया पावर मॉडल, घाटा कम करने की तैयारी

उत्तर प्रदेश में बिजली व्यवस्था को दुरुस्त करने और लगातार हो रहे घाटे से उबरने के लिए योगी सरकार एक बड़े बदलाव की तैयारी में है। राज्य में बिजली आपूर्ति के मौजूदा मॉडल को बदलकर एक नई ‘वर्टिकल प्रणाली’ लागू करने का प्रस्ताव है। इस नए मॉडल का ट्रायल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रदेश के तीन प्रमुख शहरों- लखनऊ, नोएडा और गाजियाबाद में किया जा सकता है।

इस सुधार का मुख्य उद्देश्य बिजली कंपनियों के घाटे को कम करना, तकनीकी और वाणिज्यिक नुकसान (AT&C Losses) पर लगाम लगाना और उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा देना है। सरकार का मानना है कि मौजूदा व्यवस्था में जवाबदेhi की कमी के कारण सुधार की गति धीमी है।

क्या है मौजूदा व्यवस्था की चुनौती?

वर्तमान में, उत्तर प्रदेश में बिजली का प्रबंधन उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के हाथ में है, जो एक होल्डिंग कंपनी है। इसके तहत राज्य को चार हिस्सों में बांटकर चार वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) बनाई गई हैं- पूर्वांचल, पश्चिमांचल, मध्यांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड। इसके अलावा, कानपुर शहर के लिए केस्को (KESCo) अलग से काम करती है।

इस व्यवस्था में उत्पादन, पारेषण (ट्रांसमिशन) और वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) के लिए अलग-अलग इकाइयां जिम्मेदार हैं। इस वजह से किसी एक क्षेत्र में बिजली कटौती या खराबी के लिए किसी एक संस्था को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराना मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि AT&C लॉस 15% से अधिक बना हुआ ہے, जिससे हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।

कैसा होगा नया पावर मॉडल?

प्रस्तावित नए मॉडल के तहत, एक ही कंपनी को किसी নির্দিষ্ট भौगोलिक क्षेत्र में बिजली उत्पादन से लेकर उपभोक्ताओं के घरों तक बिजली पहुंचाने, मीटर लगाने, बिल वसूलने और रखरखाव तक की पूरी जिम्मेदारी दी जाएगी।

  • एकल खिड़की प्रणाली: उपभोक्ताओं को बिजली से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए एक ही जगह संपर्क करना होगा।
  • जवाबदेही तय होगी: बिजली कटौती, फॉल्ट या बिलिंग संबंधी समस्याओं के लिए सीधे तौर पर एक ही कंपनी जिम्मेदार होगी।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: इस मॉडल में निजी कंपनियों को शामिल किया जा सकता है, जैसा कि दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद जैसे शहरों में सफल रहा है। इन शहरों में निजी कंपनियों के आने से न केवल घाटा कम हुआ, बल्कि आपूर्ति की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ।

लखनऊ, नोएडा और गाजियाबाद ही क्यों?

पायलट प्रोजेक्ट के लिए इन तीन शहरों को चुनने के पीछे कई रणनीतिक कारण हैं। नोएडा और गाजियाबाद राज्य के प्रमुख औद्योगिक और वाणिज्यिक केंद्र हैं, जहां बिजली की खपत और राजस्व दोनों अधिक है। वहीं, लखनऊ राजधानी होने के नाते एक प्रतिष्ठित केंद्र है। इन शहरों में सफलता मिलने पर इस मॉडल को प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी लागू करने पर विचार किया जाएगा।

सरकार का मानना है कि अगर इन शहरों में एक ही कंपनी को पूरी जिम्मेदारी दी जाती है, तो वह निवेश करने, tecnología को अपग्रेड करने और प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित होगी, जिससे AT&C घाटे में कमी आएगी और बिजली व्यवस्था पटरी पर लौट सकेगी। यह कदम उत्तर प्रदेश के बिजली क्षेत्र में सुधारों की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।