Utpanna Ekadashi 2025: आज है उत्पन्ना एकादशी, जानें पूजा का सही तरीका, शुभ समय और पूरी पौराणिक कथा

नई दिल्ली: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है। हर साल कुल 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली उत्पन्ना एकादशी का महत्व सबसे अलग है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन देवी एकादशी की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।

साल 2025 में उत्पन्ना एकादशी का व्रत 2 दिसंबर, मंगलवार को रखा जाएगा। यह व्रत भगवान विष्णु के भक्तों के लिए विशेष फलदायी माना जाता है। आइए जानते हैं इस व्रत की सही तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसकी पौराणिक कथा।

उत्पन्ना एकादशी 2025 की तिथि और पारण का समय

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 2 दिसंबर 2025 को सुबह 01 बजकर 01 मिनट पर शुरू होगी। यह तिथि अगले दिन यानी 3 दिसंबर 2025 को सुबह 03 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के नियम के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी का व्रत 2 दिसंबर को ही रखा जाएगा।

व्रत का पारण यानी व्रत खोलने का समय अगले दिन द्वादशी तिथि पर होगा। 3 दिसंबर को व्रत पारण का शुभ समय सुबह 07 बजकर 34 मिनट से लेकर सुबह 09 बजकर 04 मिनट तक रहेगा। इसी अवधि में व्रत का पारण करना शुभ माना गया है।

क्यों खास है उत्पन्ना एकादशी? जानें इसका धार्मिक महत्व

उत्पन्ना एकादशी को सभी एकादशियों की शुरुआत माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने मुर नामक एक शक्तिशाली असुर का वध करने के लिए अपने शरीर से एक देवी को उत्पन्न किया था। चूंकि यह देवी एकादशी तिथि पर प्रकट हुई थीं, इसलिए भगवान विष्णु ने उन्हें ‘एकादशी’ नाम दिया।

भगवान विष्णु ने देवी एकादशी को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस दिन पूरी श्रद्धा से व्रत रखेगा और उनकी पूजा करेगा, उसके सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और उसे अंत में मोक्ष की प्राप्ति होगी। इसी दिन से एकादशी व्रत की परंपरा शुरू हुई। यह व्रत व्यक्ति को न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और सौभाग्य भी प्रदान करता है।

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

सतयुग में मुर नामक एक अत्यंत बलशाली और क्रूर राक्षस था। उसने अपने पराक्रम से स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और इंद्रदेव समेत सभी देवताओं को वहां से निकाल दिया। परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे, जिन्होंने उन्हें भगवान विष्णु की शरण में जाने की सलाह दी।

देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु मुर राक्षस से युद्ध करने के लिए निकल पड़े। यह युद्ध एक हजार वर्षों तक चलता रहा, लेकिन मुर पराजित नहीं हुआ। युद्ध के दौरान भगवान विष्णु को थकान महसूस हुई और वे विश्राम करने के लिए हेमवती नामक गुफा में चले गए। जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में थे, तब मुर राक्षस उनका वध करने के इरादे से वहां पहुंच गया।

जैसे ही मुर ने भगवान विष्णु पर आक्रमण करने के लिए शस्त्र उठाया, भगवान के शरीर से एक दिव्य और तेजस्वी कन्या प्रकट हुईं। उस देवी ने मुर राक्षस को युद्ध के लिए ललकारा और अपने तेज से उसे भस्म कर दिया। जब भगवान विष्णु निद्रा से जागे तो उन्होंने देवी से उनका परिचय पूछा। देवी ने बताया कि वह उनके ही अंश से उत्पन्न हुई हैं और उन्होंने मुर का वध किया है।

यह सुनकर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। चूंकि देवी का प्राकट्य एकादशी तिथि को हुआ था, इसलिए उन्होंने उन्हें ‘एकादशी’ नाम दिया और वरदान दिया कि आज से जो भी इस तिथि पर मेरा और तुम्हारा व्रत करेगा, उसे सभी तीर्थों का फल मिलेगा और उसके समस्त पापों का नाश होगा।

इस विधि से करें भगवान विष्णु की पूजा

उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद हाथ में जल, अक्षत और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल पर एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।

भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं और फिर उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल, फल, चंदन और तुलसी दल अर्पित करें। पूजा के दौरान घी का दीपक जलाएं और धूप दिखाएं। इसके बाद उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा पढ़ें या सुनें। अंत में विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और भगवान विष्णु की आरती उतारें। दिनभर फलाहार व्रत रखें और रात में जागरण कर भजन-कीर्तन करें। अगले दिन द्वादशी को शुभ मुहूर्त में ब्राह्मण को भोजन कराने और दान-दक्षिणा देने के बाद स्वयं भोजन करके व्रत का पारण करें।