Indore News : लोग गुजर जाते हैं लेकिन उनकी दी हुई सीख हमेशा याद रहती है, प्रेरित करती है। महात्मा गांधी और विनोबा भावे के सिद्धांतों से प्रेरित, “दादा साहेब” के नाम से प्रसिद्ध स्व. मोरेश्वर वामन मोघे (दादा सा) अपने आदर्शों, समाजसेवा और मानवीय मूल्यों के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे। उनकी पुण्यतिथि पर प्रतिवर्ष पागनिसपागा स्थित बाल निकेतन संघ इंदौर में विशेष आयोजन कर उनके विचारों को जीवंत किया जाता है।
इस वर्ष दादा सा की 20वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित अंतर्विद्यालयीन सामूहिक भजन प्रतियोगिता में शहर के 13 विद्यालयों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। यह प्रतियोगिता शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2025 को बाल निकेतन संघ परिसर में संपन्न हुई।
प्रतियोगिता में लोकमान्य विद्या निकेतन स्कूल ने प्रथम, तीरथ बाई कलाचंद स्कूल ने द्वितीय, और भवंस प्रोमिनेन्ट स्कूल ने तृतीय पुरस्कार प्राप्त किया, जबकि प्रतियोगिता ने जबरदस्त प्रदर्शन देने के लिए दो बच्चों (माधव खंडेलवाल और सनातन उपाध्याय) को प्रोत्साहन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में शहर के सुप्रसिद्ध गायक दीपक बिडवई, शास्त्रीय संगीत गायिका स्मिता मोकाशी और देश की पहली महिला पखावज वादक चित्रांगना आगले रेशवाल उपस्थित रहीं। निर्णायक मंडल ने चयनित विजेता विद्यालयों को चलत मंजूषा, ट्रॉफी और प्रमाणपत्र प्रदान किए। वहीं अन्य प्रतिभागी विद्यालयों को प्रोत्साहन प्रमाणपत्र दिए गए।
इस वर्ष प्रतियोगिता में शहर के प्रमुख विद्यालय — तीरथ बाई कलाचंद स्कूल, विध्यांजलि इंटरनेशनल स्कूल, पिंक फ्लावर स्कूल, न्यू पिंक फ्लावर स्कूल, लोकमान्य स्कूल, एडवांस एकेडमी, माहेश्वरी स्कूल, क्रिश्चियन एमिनेंट स्कूल, क्लॉथ मार्केट स्कूल, वैष्णव स्कूल, के. बी. पटेल बायग्यानी स्कूल और भवंस प्रोमिनेन्ट स्कूल — शामिल हुए।
विद्यार्थियों ने “ऐसी लागी लगन…”, “वैष्णव जन तो…” और “राम का गुणगान करिए…” जैसे सुमधुर भजनों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया। बाल निकेतन संघ की सचिव डॉ. नीलिमा अदमणे, प्राचार्य संदीप धाकड़ और मुख्य अतिथियों ने सभी प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन करते हुए पुरस्कार राशि और स्मृति चिन्ह भेंट किए।
इस दौरान अतिथि दीपक बिडवई ने कहा, “बच्चों में संगीत के प्रति ऐसा उत्साह देखकर बहुत खुशी होती है। संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह अनुशासन सिखाता है और बच्चों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका देता है। जब बच्चे मंच पर पूरी मेहनत और जोश के साथ गाते हैं, तो यह उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ाता है और उनकी व्यक्तिगत विकास में मदद करता है। दादा साहब की स्मृति को यूँ जीवन रखने के लिए आप सभी को शुभकामनाएं।”
वहीं स्मिता मोकाशी ने कहा कि – “शास्त्रीय संगीत हमारी सांस्कृतिक और पारंपरिक धरोहर की पहचान है। ऐसी प्रतियोगिताएं बच्चों को भारतीय संगीत से जोड़ती हैं और उन्हें अपनी कला में निखार लाने का अवसर देती हैं। इससे बच्चों में आत्मविश्वास पैदा होता है। बालनिकेतन परिवार को इस सफल आयोजन के लिए शुभकामनाएं।”
चित्रांगना आगले रेशवाल ने कहा, “कला की कोई सीमा नहीं होती और हर कोई इसे सीख सकता है। बालनिकेतन में ऐसे कार्यक्रम हो रहे हैं इसे देखकर बहुत अच्छा लगता है क्योंकि बच्चे न केवल उत्साह के साथ सीख रहे हैं, बल्कि मंच पर अपने समर्पण और मेहनत से प्रस्तुतियां दे रहे हैं। यह देखकर लगता है कि उनका भविष्य संगीत और कला में उज्ज्वल है।”
अंत में बाल निकेतन संघ की शिक्षिका श्रुति खानवलकर ने आभार व्यक्त करते हुए कहा, “मैं सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का हृदय से धन्यवाद करती हूं। सभी विद्यालयों के बच्चों ने अत्यंत उत्कृष्ट प्रस्तुतियां दीं, जिससे निर्णय लेना बेहद कठिन रहा। मेरी शुभकामनाएं हैं कि आप सभी दादा साहेब के आदर्शों और उनके मूल्यों से प्रेरणा लेकर इसी तरह आगे बढ़ते रहें और नई ऊंचाइयों को छूते रहें।”