‘वंदे मातरम’, गीत जो भर देता है आज भी देशभक्ति का जोश, 150 वीं वर्षगाठ मना रहा है देश

स्वतंत्रता दिवस आज का दिन कई मायनों में बेहद खास होता है। 15 अगस्त यानी अपनी आजादी और इस आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले वीर सपूतों की याद दिलाता है। देश को आजाद करने में न सिर्फ वीर सैनानियों की देशभक्ति, बल्कि उनके दिए हुए नारे, कविताएं और गीतों ने भी अहम भूमिका निभाई थी।

शब्द कर देते थे रोंगटे खड़े
देश की आजादी के लिए हो रहे आंदोलन में सिर्फ वहीं स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे जो अंग्रेजो की लाठियां खाते थे। वह भी वीर सेनानी थे जो अपने शब्दों से देशभक्ति की जुनून जगा देते थे। जो अपने नारे, कविताएं और गीतों ने भी अपनी महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई है। ‘इंकलाब जिंदाबाद’  से लेकर ‘भारत माता की जय’  तक यह कुछ ऐसे शब्द है, जिनको सुनते ही आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इनमें से एक वंदे मातरम भी है, जो बकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखी गई एक मशहूर कविता है, जिसे बाद में राष्ट्रगीत का स्थान भी दिया गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गीत को बने 150 साल पूरे हो चुके हैं।

तुगलकी फरमान कि विरोध में वंदे मातरम की रचना
जब भारत में ब्रिटिश राज हुआ करता था और इस दौरान बकिम चंद्र चटर्जी सरकारी नौकरी में थे। इसी समय ब्रिटिश सरकार ने एक तुगलकी फरमान जारी करते हुए कहा कि भारत में ‘गॉड सेव द क्वीन’  नामक विदेशी गीत गाया जाएगा। ब्रिटिश सरकार के इस फैसले से बकिम चंद्र काफी नाराज थे। उन्हें यह बिल्कुल भी मंजूर नहीं था कि भारत में विदेशी रानी का गाना गाया जाए। बस यही वह पल था, जिसने बकिम चंद्र को वंदे मातरम गीत रचना की प्रेरणा दी।

वीरो की प्रेरणा बना था वंदे मातरम
अंग्रेज सरकार के इस फरमान को सुन उन्होंने फैसला किया कि वह एक ऐसा गीत लिखेंगे, जिसमें भारत का गुणगान हो और अपने इसी फैसले पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने साल 1876 में वंदे मातरम नामक कविता की रचना की। देश भक्ति से भरपूर उनकी इस कविता को उन्हीं के लोकप्रिय उपन्यास आनंद मठ में सबसे पहले प्रकाशित किया गया। उनकी इस रचना ने उस दौर में भारत की आजादी की जंग लड़ रहे वीर सपूतों के लिए प्रेरणा स्रोत का काम किया।

कोलकाता के अधिवेशन में गुंजा था वंदे मातरम
बकिम चंद्र चटर्जी ने इस कविता की रचना साल 1876 में की थी। इसके दो पैरा संस्कृति और बाकी के शेष पैराग्राफ बंगाली भाषा में थे। वहीं, बात करें इसे स्वरबद्ध करने की, तो महान कवि और राष्ट्रगान के लेखक रविंद्र नाथ टैगोर ने इस गीत को स्वरबद्ध किया था और उन्होंने ही सबसे पहले कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में 1896 में इसे गाया था। बाद में अरबिंदो घोष ने इस गीत का अंग्रेजी और आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू में अनुवाद किया था। यह जानकारी विश्वनाथ मुखर्जी द्वारा लिखित किताब वंदे मातरम का इतिहास में लिखी गई है।

1950 में मिला राष्ट्रीय गीत का स्थान
आजादी के बाद 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगान के साथ ही वंदे मातरम को भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया। भारत सरकार के ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक इस गीत का स्थान राष्ट्रगान के बराबर ही है।