दिल्ली विश्वविद्यालय में संविधान विषय पर आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट और संसद के अधिकार क्षेत्र को लेकर अपनी बेबाक राय रखी। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि संसद ही देश की सर्वोच्च संस्था है, और इसके ऊपर कोई अन्य सत्ता नहीं हो सकती।
सांसद हैं संविधान के असली निर्माता
उपराष्ट्रपति ने कहा कि सांसद ही संविधान के असली मालिक हैं, और वही तय करते हैं कि संविधान का स्वरूप कैसा होगा। उनका कहना था कि संविधान जनता के लिए बना है और यह उन्हें सुरक्षित रखने के लिए है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “संसद सर्वोच्च है, उसके ऊपर कोई नहीं हो सकता।”
यह बयान उस समय आया है जब हाल ही में संसद और सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को लेकर देश में बहस तेज हुई है।
सुप्रीम कोर्ट को “सुप्रीम संसद” कहने पर भी टिप्पणी
धनखड़ ने इससे पहले 17 अप्रैल को भी सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को लेकर टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि “अदालतों का व्यवहार ऐसा हो गया है जैसे वे सुप्रीम संसद हों।” उन्होंने यह भी दोहराया कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं, क्योंकि राष्ट्रपति एक संवैधानिक सर्वोच्च पद है।
विवाद की जड़: तमिलनाडु मामला
यह पूरा मुद्दा तब उभरा जब तमिलनाडु सरकार और वहां के राज्यपाल के बीच राज्य सरकार के विधेयकों को लेकर मतभेद हुआ। मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया और अदालत ने निर्देश दिया कि राज्यपाल को एक निर्धारित समयसीमा के भीतर निर्णय लेना होगा। साथ ही, अदालत ने राष्ट्रपति द्वारा लिए जाने वाले निर्णय के लिए भी एक महीने की टाइमलाइन तय की।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सवाल उठाए थे और यही विवाद उपराष्ट्रपति धनखड़ के ताजा बयान की पृष्ठभूमि बना।
“आपातकाल से मिली सीख”
धनखड़ ने अपने वक्तव्य में इतिहास का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि “एक प्रधानमंत्री ने आपातकाल लगाया था, लेकिन 1977 में जनता ने उन्हें जवाबदेह ठहराया।” इस उदाहरण के माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि अंततः जनता सर्वोच्च है, और संविधान उसकी सेवा में है।