लेखक
चैतन्य भट्ट
पेरिस ओलंपिक में महिला पहलवान विनेश फोगाट के मात्र सौ ग्राम वजन से प्रतियोगिता से बाहर होने की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। प्रारंभिक चक्रों में शानदार प्रदर्शन करने वाली कम से कम रजत पदक की निश्चित दावेदार विनेश तकनीकी वजह से पूरी प्रतियोगिता से ही बाहर हो गईं। इस चूक के लिए जिम्मेदार वजहें अभी भी रहस्य हैं।
Vinesh Phogat भी यौन शोषण के खिलाफ आंदोलन में शामिल थीं
विनेश ( Vinesh Phogat ) और अन्य अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता पहलवान कुश्ती परिसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाकर चर्चा में रहे थे। दबंग नेता और हत्या के आरोप समेत अन्य विवादों में घिरे रहने की छवि वाले बृजभूषण 2011 से कुश्ती संघ का नियंत्रण संभाल रहे थे। रुतबा ऐसा था कि उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए आंदोलनरत पहलवानों को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा। पद छोडऩे के बावजूद संघ पर सिंह का परोक्ष नियंत्रण बने रह जाने से आहत ओलिंपिक पद विजेता पहलवान साक्षी मलिक ने तो रिटायरमेंट का एलान तक कर दिया था। एक अन्य चैंपियन बजरंग पुनिया अपनी पदमश्री का तमगा प्रधानमंत्री आवास के पास फुटपाथ पर रख आए थे। इस प्रकरण से खेल संघों पर राजनीतिक रसूख वाले ऐसे लोगों का शिकंजा कसे होने का मुद्दा उठा , जो अपनी मनमानी चलाते हैं।
भारत में अधिकांश खेल संघों का गठन खेल और खिलाडिय़ों के हित में होने के बजाय राजनीतिक गुणा-भाग से होता है इसलिए सत्ताधारी पार्टी से जुड़े नेता सीधे या परोक्ष रूप से वहां काबिज हो जाते हैं। एक दशक पहले भारतीय क्रिकेट संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए प्रभावी दिशा-निर्देशों के चलते क्रिकेट के संचालन में तो फर्क पड़ा मगर अन्य खेल संघों के गठन और संचालन का तौर-तरीका कमोबेश पहले जैसा रहा। 2017 में भारतीय बैडमिंटन संघ का अध्यक्ष पद संभालने वाले असम मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा 2022 से 2026 तक दूसरे कार्यकाल के लिए निर्विरोध चुने गए हैं। हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला द्वारा टेबल टेनिस फेडरेशन ऑफ इंडिया अध्यक्ष पद छोडऩे के बाद अब उनकी पत्नी मेघना अहलावत इसकी अध्यक्ष हैं। पूर्व हॉकी खिलाड़ी और बीजू जनता दल के पूर्व सांसद दिलीप टिर्की सितंबर, 2022 से हॉकी संघ के अध्यक्ष हैं। केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री और पूर्व झारखंड मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष हैं। पंजाब के पूर्व मंत्री परमिंदर ढींडसा लंबे समय से साइक्लिंग फेडरेशन के अध्यक्ष हैं। ब्रजभूषण के स्थान पर कुश्ती महासंघ प्रमुख चुने गए संजय सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हैं। भाजपा की मीडिया रणनीति पर काम करने वाले और “अबकी बार मोदी सरकार” नारे के जनक अजय सिंह मुक्केबाजी महासंघ के अध्यक्ष हैं। फुटबॉल महासंघ भाजपा के कल्याण चौबे ने संभाला हुआ है। भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष, एथलेटिक्स की दिग्गज पीटी उषा, भाजपा द्वारा मनोनीत राज्यसभा सांसद हैं।
नेताओं के इस तथाकथित खेल प्रेम की वजह क्या है ? दरअसल सरकारी आर्थिक मदद पर चल रहे संघों पर पकड़ नेताओं को विदेश यात्राओं के साथ साथ लाखों खेल दर्शकों की निगाह में सुर्खियों में बने रहने का मौका देती है। 2020 टोक्यो ओलंपिक में भारतीय दल के स्टेडियम में प्रवेश के समय टेलीविजन प्रसारण में एथलीटों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर की छवियों वाली स्प्लिट-स्क्रीन दिखाई गई। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में चयन के समय राजनीतिक गुणा-भाग साधे जाते हैं। खेल संघों को इस राजनीतिक हस्तक्षेप के फायदे भी हैं। प्रशासन का कार्य सिर्फ खिलाडिय़ों के बस का नहीं है। नेताओं की प्रशासनिक क्षमता कम से कम तब तक महत्वपूर्ण है जब तक पेशेवर प्रबंधकों की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं हो जाती। क्रिकेट के साथ ऐसा हो चुका है। एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि क्रिकेट छोड़ दें तो अधिकांश भारतीय खेल सरकारी मदद पर निर्भर हैं। नेताओं की सत्ता तक पहुंच इसे सुलभ बनाती है। भारत ने जिन आठ खेलों में ओलंपिक पदक जीते हैं, उनमें से चार , हॉकी, शूटिंग, बैडमिंटन और टेनिस संघों के प्रमुख राजनेता हैं। इसके चलते कम से कम वर्तमान परिस्थितियों में खेल और राजनीति का सह-अस्तित्व जरूरी लगता है।
टीवी मीडिया और आईपीएल जैसे माध्यमों ने क्रिकेट को जैसी लोकप्रियता दी है उसके चलते न सिर्फ खेल बल्कि उससे जुड़े खिलाडिय़ों के दिन भी फिर गए हैं। यही परिस्थितियां धीरे-धीरे फुटबॉल और कबड्डी जैसे पारंपरिक खेलों में भी बन रही हैं। भारत एक खेलप्रेमी देश है और कोई वजह नहीं है कि योजना बद्ध तरीके से अन्य खेलों में भी ऐसी ही क्रांति लाई जा सके जिससे खेल सरकारी मदद पर निर्भरता से मुक्त हो सकें। अन्यथा तो लगभग डेढ़ सौ करोड़ लोगों के देश का अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रदर्शन ऐसा ही निराशाजनक रहेगा।
बहरहाल विनेश फोगाट की बात पर लौटें तो कुश्ती से संबंधित विवाद में एक बात खुलकर सामने आई है: नई बनी राजनीतिक परिस्थितियों में सत्ता से जुड़े नेताओं में किस तरह की निर्भयता और जनमत के प्रति बेरुखी है। इसका महिला खिलाडिय़ों के मनोविज्ञान और खेल जगत में भारत के भविष्य पर कितना दुष्प्रभाव होगा, इसका फिलहाल अनुमान ही संभव है। जिस देश में गिने-चुने चैंपियन खिलाड़ी हों और फिर भी उनका इस हद तक अनादर हो, तो इसे एक दुखद स्थिति ही कहा जाएगा। विनेश फोगाट सक्रिय राजनीति में प्रवेश की प्रक्रिया में हैं और अगर ऐसा हुआ तो पेरिस में उनके साथ हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर राजनीति निश्चित है। इसके बावजूद विनेश के साथ पेरिस के दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम, जिसने पदकों के अकाल वाले देश को एक निश्चित पदक से वंचित कर दिया, की विस्तृत जांच और जिम्मेदारी निर्धारित किया जाना जरूरी है। कोई नहीं चाहेगा कि ऐसी घटना दोहराई जाए।
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं)