हम पीछे रह गए या वो आगे निकल गए…!


प्रकाश पुरोहित
(वरिष्ठ पत्रकार एवं व्यंग्यकार)

दो दिन पहले तक तो सफाई में सातवें-आसमान पर थे हम, लेकिन एक दिन पहले यह शक उग आया था कि ‘सूरत’ कहीं खेल बिगाड़ ना दे! सूरत वही शहर है, जो किसी जमाने में, यानी बीस साल पहले, सबसे गंदे शहर में शामिल था, गंदगी से वहां प्लेग फैलने लगा था और फिर नए कमिश्नर ने कैसे उसका कायाकल्प कर दिया था, और बाद में वही सूरत, देखने काबिल हो गया था। तीन साल से इंदौर को टक्कर दे रहा था सूरत, और इस बार तो उसने हमें हराया भले ही ना हो, बराबरी तो कर ली है। यहां सोचना जरूरी है कि क्या हम पिछड़ गए या या सूरत, हमसे आगे निकल गया?

अब तक सफाई में अव्वल होने की वजह यह नहीं है कि हम इंदौरी नियम-कायदे वाले हो गए हैं। ये कमाल तो उन सफाई-वीरों का है, जो हर मौसम में झाड़ू लिए सुबह-शाम सडक़ों पर नजर आते हैं। हम ज्यादा से ज्यादा यही करते हैं न कि गीला और सूखा कचरा अलग कर देते हैं और कचरा, घरों के बाहर रख कर फुरसत पा लेते हैं। स्वच्छता के गीत बजाती पीली गाडिय़ां आती हैं और हमारी गंदगी ले जाती हैं। धन्यवाद हमारा, कि हम घर में साफ-सफाई रखना सीख गए हैं, लेकिन बाकी क्या…?

क्या आज भी गुटका खाकर सडक़ पर थूकने वाले लाखों मुंह नहीं हैं? क्या चलती गाड़ी से खाली रैपर हम सडक़ों पर नहीं फेंकते हैं? क्या हम अपनी तरफ से शहर को साफ रखने के लिए जरा-भी कोशिश करते हैं? कार का ढक्कन खोलकर थूकने वालों को रोकने के लिए कोई आगे आता है? सडक़ पर गंदगी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होती है क्या? सडक़ पर थूकने वालों को इस बात का अहसास भी कराया जाता है कि यह उनका जन्मसिद्ध-अधिकार नहीं है और यह अपराध की श्रेणी में आता है?

सिर्फ सफाई-योद्धा के दम पर हम हर बार अव्वल नहीं हो सकते, क्योंकि अब आम इंदौरी की जिम्मेदारी है कि वह खुद तो गंदे काम नहीं करे, बाहरी लोगों को भी सफाई के सबक दे। जिस तरह मटके को ऊपर से ठोक कर और अंदर से हथेली लगा कर मजबूत बनाया जाता है, वैसे ही सिर्फ दंड या समझाइश से कुछ नहीं होगा। दोनों हाथ लगाने होंगे। सरकारी-सख्ती भी जरूरी है आम नागरिक पर, सिर्फ सफाई कर्मचारियों के भरोसे तो हम अव्वल नहीं बने रह सकेंगे।

सफाई के संस्कार समझाइश के साथ दंड से आते हैं। गंदगी करने वालों पर ना सिर्फ सख्त कार्रवाई हो, उनके बारे में आम जनता को बताया भी जाए कि हर रोज कितने लोगों को गंदगी करते धरा है और उनसे कितनी वसूली हुई है। दो-चार नमूने बताने से कुछ नहीं होगा, हर रोज चौंकाने वाले आंकड़े लाने होंगे। जगह-जगह चैकिंग भी हो!

सफाई में हम अव्वल हैं, अब यह साबित करने की जिम्मेदारी इंदौरियों की है। जब सफाई कर्मी कभी छुट्टी रख लें और उस दिन भी शहर में कचरा नजर न आए तो समझ लें, सफल हो गई हमारी आराधना, वरना अभी तो अधिकारियों और कर्मचारियों का ही दमखम नजर आ रहा है… आमजन नदारद ही है!
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।)