क्या है भगोरिया मेले की परंपरा ? क्या आज भी भगा ले जाते है लड़कियों को ?

धूम-धाम से मनाये जाने वाले भगोरिया मेले की शुरुवात हो चुकी है,

मध्यप्रदेश के आदवासी इलाको में भगोरिया मेलो की धूम मचने वाली है. यह उत्सव आमतौर पर मध्यप्रदेश के झाबुआ और अलीराजपुर जिले में भगोरिया हाट के रूप में काफी प्रचलित है. आदिवासी लोग यह महोत्सव बड़ी ही धूम-धाम से मनाते है. यह उत्सव लोग हस्ते खेलते-कूदते, हर्षो उलास के साथ, ढोल-नगाडो पर नाचते हुए, झूलो में झूलते हुए, पान खाते, गुलाल लगाते हुए मनाते है. यही वजह है की भगोरिया मेले की तैयारिया किसी त्यौहार से कम नही है. आदिवासी लोगो का यह उत्सव होलिका दहन से सात दिन पहले शुरू हो जाता है. भगोरिया मेला आदवासी समाज के लोगो के लिए एक महतवपूर्ण त्यौहार है.

क्या है भगोरिया मेला –

कुछ लोग भगोरिया हाट को पारंपरिक प्रणय पर्व भी कहते है.पारंपरिक प्रणय पर्व इसीलिए कहते है क्योंकि इस पर्व के बाद आदिवासी समाज में शादी-ब्याह शुरू हो जाते है, कहा जाता है की आदिवासी समाज में होली का डंडा गड जाने के बाद शादियां नही होती है और गल घुमने के बाद शादियां शुरू हो जाती है. पर अब समय के साथ परम्परा में बदलाव आ गया है. इस हाट में लोग अपने मन पसंद कपडे और आभूषण पहनते और हाट से खरीदारी करते है. इसके बाद लोग 7 दिन तक अलग-अलग जगह जाकर वहा का हाट घूमते है और मस्ती करते झुला झूलते है

कब हुई भगोरिया मेले की शुरुआत-

परंपरिक मान्यताओ के मुताबिक मेले की शुरुआत 1010 से 1053 राजा भोज के समय में हुई. उस समय में दो भील राजा हुआ करते थे, जिनका नाम कासुमारा और बालून था, कासुमारा और बालून ने अपने राज्य में भागोर की शुरुआत की थी, देखते ही देखते बाकि भील राजाओ ने भी अपने राज्य में भागोर की शुरुआत कर दी. उस समय भगोरिया मेले को भगोर कहा जाता था। इसके बाद से ही आदिवासी बाहुल्य इलाकों में भगोरिया उत्सव मनाया जाता है.

हर्षो उलास के साथ मनाया जाता है भगोरिया-

बच्चे, बूढ़े, जवान,युवक ,युवतियां सभी इस मेले का आनंद लेते है. यही नही लड़कियां परंपारिक तरीके से अपना श्रृंगार करती है. लडकिया पूरी तरह से पारंपरिक वेश-भूषा में होती हैं। साथ ही आदिवासी लडकिया मेले में हाथों पर टैटू गुदवाती हैं। सभी लोग ढोल-नगाड़े पर नाचते है, झुला झूलते है, पान खाते है. मेले में आदिवासी लोगो की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. आदिवासी समाज के लोग अपनी-अपनी टोलियों के साथ मेले में बांसुरी, ढोल, और मंजीरे बजाते नजर आते है.

दूर-दूर से आते है लोग-

होलिका दहन से सात दिन पहले मनाये जाने वाले इस उत्सव में पूरा आदिवासी समाज मग्न हो जाता है. इन सात दिनों में आदिवासी समाज के लोग अपनी जिंदगी खुल कर जीते है. भगोरिया मेले के लिए परिवार का कोई भी सदस्य भले देश के किसी भी कोने में क्यों न हो, पर मेले के लिए वह अपने घर लोट कर आ ही जाता है और अपने परिवार के साथ मिल कर भगोरिया मेले में जाता है. भगोरिया मेला किसी त्यौहार से कम नही है, मेले का नजारा बहुत खूबसूरत होता है. मेले में पूरा दिन रंगारंग कार्यक्रम की प्रस्तुति होती है. और यही वजह है की भगोरिया को उल्लास पर्व भी कहा जाता है

पान खिला कर, गुलाल लगाकर करते है अपने प्यार का इजहार-

भगोरिया उत्सव में युवक और युवतियां अपना हमसफर ढूंढते है.और हमसफर पसंद आ जाने पर उनकी शादी भी घरवालो की मर्जी के साथ की जाती है यही नही अपने प्यार को जताने का और अपने प्यार के इज़हार करने का तरीका भी बहुत निराला है, जब लड़का लड़की एक दुसरे को पसंद कर लेते है तो वह उन्हे पान देते है और अगर लड़का-लड़की वह पान खाले इसका मतलब की उनकी की भी हां है और इसके साथ-साथ एक दुसरे को गुलाल लगाकर भी अपने प्यार का इजहार किया जाता है. इसके बाद परिवार वालो की सहमती के साथ दोनों की शादी कर दी जाती है.