कौन हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी? कैसे होता हैं मौसी के आंगन में प्रभु का स्वागत

हर साल उड़ीसा के पुरी नगर में लाखों श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ता है, जब भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के घर, गुंडिचा मंदिर की यात्रा पर निकलते हैं। यह अनुपम यात्रा आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को प्रारंभ होती है और इसे रथ यात्रा कहा जाता है। रथ यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह भक्ति, प्रेम और भगवान की लीला का जीवंत प्रदर्शन भी है।

रथ यात्रा से पहले एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, भगवान जगन्नाथ के मंदिर के पट पूरे 15 दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इस अवधि को ‘अनवसर’ कहा जाता है। मान्यता है कि इस दौरान भगवान ज्वर से पीड़ित हो जाते हैं और विश्राम करते हैं। ठीक होते ही वे अपने मौसी के घर सैर पर निकल पड़ते हैं। यह रहस्य और भक्ति से भरी लीला भक्तों के लिए अत्यंत भावुक और श्रद्धास्पद होती है।

कौन हैं माता गुंडिचा?

गुंडिचा देवी, राजा इंद्रद्युम्न की धर्मपत्नी थीं, जिन्होंने भगवान जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण कराया था। उन्हें भगवान की ‘मौसी’ माना गया है, और इसी कारण से भगवान वर्ष में एक बार उनके मंदिर जाकर विश्राम करते हैं। गुंडिचा मंदिर पुरी के मुख्य मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इसकी वास्तुकला प्राचीन कलिंग शैली की झलक प्रस्तुत करती है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भगवान के स्नेह, प्रेम और स्मृति का भी प्रतीक है।

गुंडिचा माता और मूर्ति निर्माण की पौराणिक कथा

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने दर्शन देकर समुद्र किनारे मिलने वाली एक दिव्य लकड़ी से मूर्ति निर्माण का आदेश दिया। जब वह लकड़ी मिली, तब देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा स्वयं वृद्ध रूप में आए और मूर्ति बनाने की शर्त रखी, कि 21 दिनों तक कोई उन्हें न देखे। राजा की अधीरता के चलते कुछ दिन पहले ही द्वार खोल दिया गया, जिससे मूर्तियाँ अधूरी रह गईं, हाथ-पैर विहीन। लेकिन तब भगवान ने स्वप्न में प्रकट होकर आदेश दिया कि वही अधूरी मूर्तियाँ ही उनकी सच्ची रूप होंगी।

रानी गुंडिचा की तपस्या और लीला का प्रारंभ

जब राजा ब्रह्मा जी से मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा का आशीर्वाद लेने ब्रह्मलोक गए, तब रानी गुंडिचा ने भगवान से वादा लिया कि वे हर साल उनसे मिलने आएंगे। फिर रानी गुंडिचा तपस्या में लीन हो गईं और उसी स्थान पर गुंडिचा मंदिर की स्थापना हुई। यह मान्यता आज भी जीवंत है कि भगवान हर वर्ष अपनी मौसी से मिलने उसी मंदिर में आते हैं।

गुंडिचा मार्जन: मंदिर शुद्धिकरण की अनोखी परंपरा

भगवान जगन्नाथ की यात्रा से एक दिन पहले गुंडिचा मंदिर की विशेष सफाई की जाती है, जिसे ‘गुंडिचा मार्जन’ कहा जाता है। यह प्रक्रिया भक्तों के लिए अत्यंत पुण्यदायक मानी जाती है। स्वयं श्री चैतन्य महाप्रभु ने भी इस अनुष्ठान में भाग लिया था। यह अनुष्ठान इस बात का प्रतीक है कि भगवान के स्वागत के लिए तन और मन दोनों को शुद्ध करना आवश्यक है।

माता गुंडिचा द्वारा भगवान का पाक्षाल स्वागत

जब भगवान अपने मौसी के घर पहुंचते हैं, तो माता गुंडिचा उन्हें विशेष पकवानों से तृप्त करती हैं। इनमें प्रमुख रूप से ‘पिठा’ (चावल के आटे से बना मीठा व्यंजन) और ‘रसगुल्ला’ होते हैं। मान्यता है कि भगवान इन व्यंजनों को बड़े प्रेम से स्वीकार करते हैं और प्रसन्न होते हैं। इस परंपरा के अंतर्गत हर वर्ष भव्य भोग तैयार किया जाता है, जिसमें सैकड़ों प्रकार के व्यंजन शामिल होते हैं।

भगवान का पुनः मंदिर लौटना

गुंडिचा मंदिर में सात दिनों का विश्राम करने के पश्चात, भगवान जगन्नाथ पुनः अपने मुख्य मंदिर लौटते हैं। इस लौटने की यात्रा को ‘बहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है। यह समापन भी अत्यंत भव्य होता है और श्रद्धालुओं के लिए भगवान की वापसी भी उत्सव से कम नहीं होती।