Lok Sabha चुनाव में छिंदवाड़ा-पांढुर्णा से किसे उतारेगी भाजपा?

स्वतंत्र समय, पांढुर्णा

लोकसभा ( Lok Sabha ) चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश के 24 अधिकृत प्रत्याशियों की घोषणा शनिवार को कर दिए हैं। लेकिन छिंदवाड़ा लोकसभा सहित कुल 5 सीटे अभी घोषित नहीं की है और इसे होल्ड पर रखा गया है। वैसे छिंदवाड़ा-पांढुर्णा लोक सभा सीट पर कई नाम भाजपा के भीतर चर्चाओ में है। लेकिन यदि कार्यकर्ताओं के अनुसार प्रमुख नाम पर नजर डाली जाए तो संत अंचल क्षेत्र के दिग्गज नेता और पूर्व राज्य मंत्री नानाभाऊ मोहोड, पांढुर्णा जिले की नवनियुक्त भाजपा जिला अध्यक्ष वैशाली महाले, सौसर के पूर्व विधायक अजय चौरे, पांढुर्णा विधानसभा सीट से प्रत्याशी रह चुके पूर्व न्यायाधीश प्रकाश उईके सहित छिंदवाड़ा भाजपा जिला अध्यक्ष बंटी साहू , जुन्नारदेव के पूर्व विधायक नत्थन शाह, छिंदवाड़ा के पूर्व मंत्री चौधरी चंद्रभान सिंह और गोंडवाना से भाजपा प्रवेश करके अमरवाड़ा से विधानसभा चुनाव लडऩे वाली मोनिका वट्टी के नाम चर्चाओं में है।

Lok Sabha प्रत्याशी के लिए मंथन कर रहा है नेतृत्व

भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय व प्रदेश नेतृत्व छिंदवाड़ा पांढुर्णा लोकसभा ( Lok Sabha )सीट को लेकर अति संवेदनशील दिख रहा है। भले ही फिलहाल मध्य प्रदेश की 29 में से 28 लोकसभा सिट भाजपा के खाते में है , लेकिन इस बार सभी 29 सीटों का लक्ष्य लेकर चल रही भारतीय जनता पार्टी सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के अभेद किले छिंदवाड़ा पांढुर्णा सीट के लिए रणनीति व कार्ययोजना बनाने में जुटी हुई है। छिंदवाड़ा पांढुर्णा लोकसभा सीट पर स्थानीय स्तर पर किसी बड़े चेहरे पर दाव लगाने की भी चर्चा जोरों पर है जो भाजपा को स्थानीय वोट बैंक बढ़ाकर जीत दिला सके इस पर भी विचार हो रहा है।

गुटबाजी से परेशान भाजपा

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और सांसद नकुलनाथ को छिंदवाड़ा पांढुर्णा लोकसभा सीट पर कड़ी टक्कर देने के लिए भाजपा को सबसे पहले अपनी ही पार्टी के भीतर ऊपर से लेकर नीचे तक चल रही गुटबाजी को समाप्त करना होगा। विधानसभा चुनाव के पहले से गुटबाजी की शिकार भाजपा सभी सातों सिट छिंदवाड़ा पांढुर्णा लोकसभा क्षेत्र के भीतर हार चुकी है। इसके बावजूद गुटबाजी में लगे भाजपा के कुछ चेहरे अभी भी सबक सिखने को तैयार नहीं है और वर्तमान में भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे है।

सीमित रहते है भाजपा नेता

भाजपा में कांग्रेस जैसा सर्वमान्य नेतृत्व तैयार न होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि जिला मुख्यालय के नेता पूरे लोकसभा क्षेत्र की कमान संभाल कर पार्टी मजबूत करने की जगह अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते केवल अपनी सीटों पर ध्यान देते हैं।