भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों होती है? जानिए उनके दिव्य स्वरूप के पीछे की कथा और रहस्य

हिंदू दर्शन में भगवान का स्वरूप केवल एक मूर्ति नहीं होता, बल्कि यह उनके चरित्र, संदेशों और दिव्यता का प्रतिनिधित्व करता है। हर देवता की आकृति कुछ विशिष्ट गुणों को दर्शाती है—कभी करुणा, कभी शक्ति तो कभी संरक्षण। इसी प्रतीकात्मकता की परंपरा में भगवान जगन्नाथ का स्वरूप सबसे रहस्यमय और गूढ़ माना गया है, जो न केवल भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाता है, बल्कि सांस्कृतिक चेतना का केंद्र भी है।

भगवान जगन्नाथ: एक अनोखा और चमत्कारी दर्शन

जब कोई भक्त पहली बार भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को देखता है, तो वह अचंभे में पड़ जाता है। गोल, विशाल आँखें जो झपकती नहीं हैं, और एक ऐसा धड़ जिसमें पारंपरिक रूप से हाथ-पाँव नहीं होते—यह रूप किसी भी सामान्य मूर्ति से एकदम भिन्न है। लेकिन यही अनोखापन इस स्वरूप को विशेष बनाता है और इसके पीछे छिपी पौराणिक कथाएं भक्तों को गहराई से छू लेती हैं।

यह रूप अधूरा नहीं, भक्ति की पूर्णता है

अक्सर लोगों के मन में यह प्रश्न आता है कि भगवान की यह आकृति अधूरी क्यों है? यह कोई मूर्तिकार की गलती नहीं, बल्कि एक गूढ़ आध्यात्मिक संदेश है। भगवान जगन्नाथ का यह स्वरूप हमें यह सिखाता है कि ईश्वर को समझने और अनुभव करने के लिए भौतिक पूर्णता की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि विश्वास और श्रद्धा ही सबसे बड़ी पूंजी होती है।

वृंदावन की कथा और भाव विभोर रूप का जन्म

एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता रोहिणी वृंदावन की लीलाओं का वर्णन कर रही थीं, तब श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा द्वार के पास खड़े होकर उसे सुनने लगे। कथा इतनी रसपूर्ण और भावनात्मक थी कि तीनों के नेत्र विस्मय और प्रेम से फैल गए। उसी क्षण नारद मुनि वहाँ पहुँचे और इस अलौकिक दृश्य से अभिभूत होकर प्रार्थना की कि यह दिव्य रूप संसार में सदा के लिए बना रहे। भगवान ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए उसी भावमय स्वरूप को अपना स्थायी रूप बना लिया।

भक्ति की आंखों में भगवान का प्रतिबिंब

एक अन्य मान्यता यह बताती है कि जब भगवान जगन्नाथ ने धरती पर अवतार लिया, तो भक्तों की असीम श्रद्धा को देखकर उनकी आँखें विस्मय से खुली की खुली रह गईं। कहा जाता है कि भगवान ने भक्तों की इस निष्कलंक भक्ति को सम्मान देते हुए अपनी दृष्टि को उसी तरह बड़ा और अटूट बना लिया, ताकि हर भक्त महसूस कर सके कि भगवान उसे देख रहे हैं, उसका ख्याल रख रहे हैं।

इन आंखों में छुपा है संरक्षण और करुणा का भाव

भगवान जगन्नाथ की विशाल आँखें केवल उनके रूप का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि एक भावनात्मक संदेश भी हैं। यह नेत्र उनके सतत जागरूक और सर्वदर्शी स्वरूप को दर्शाते हैं। कई मान्यताओं में यह भी कहा गया है कि इन आंखों में रोग निवारण की शक्ति है और ये विशेष रूप से नेत्र रोगों से पीड़ितों के लिए आशा का स्रोत हैं। भक्तों का यह विश्वास उनके रूप को और भी अधिक जीवंत बनाता है।

हाथ-पांव रहित मूर्तियों का पौराणिक कारण

एक अत्यंत रोचक कथा के अनुसार, जब राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान की मूर्तियाँ बनवाने का संकल्प लिया, तो उन्होंने देव शिल्पी विश्वकर्मा जी को आमंत्रित किया। विश्वकर्मा जी ने एक शर्त रखी कि जब तक मूर्तियाँ पूरी न बन जाएँ, तब तक कोई उन्हें देखने न आए। मगर जब भीतर से मूर्ति निर्माण की आवाजें बंद हो गईं, तो राजा बेचैन होकर दरवाजा खोल बैठे। इस गलती से क्रोधित होकर विश्वकर्मा जी तुरंत चले गए और मूर्तियाँ अधूरी रह गईं—बिना हाथ-पांव के। इस घटना ने भगवान के अद्भुत स्वरूप की आधारशिला रखी।

अधूरा दिखता है, मगर भाव से परिपूर्ण है

इन अधूरे प्रतीत होने वाले रूपों में, भगवान ने एक गूढ़ संदेश छिपा रखा है—कि वह केवल सजावटी स्वरूपों से नहीं, बल्कि सच्चे समर्पण और हृदय की गहराई से प्रसन्न होते हैं। उनकी यह आकृति आज भी करोड़ों लोगों के लिए आस्था, करुणा और सर्वत्र दृष्टि का प्रतीक बनकर पूजनीय बनी हुई है।