जाप माला में 108 मनके ही क्यों? ज्योतिष में 9 ग्रहों और 27 नक्षत्रों से जानिए इसका रहस्य

अक्सर पूजा-पाठ और मंत्र जाप के दौरान इस्तेमाल होने वाली माला में 108 मनके होते हैं। यह संख्या सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण मानी जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह संख्या 108 ही क्यों है, 100 या 109 क्यों नहीं? इसके पीछे गहरे ज्योतिषीय, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य छिपे हैं, जो ब्रह्मांड और मानव शरीर के बीच एक अद्भुत संबंध स्थापित करते हैं।

मंत्र जाप के लिए 108 मनकों की माला का उपयोग सदियों से होता आ रहा है। यह केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि इसके हर पहलू का एक विशेष अर्थ है। आइए जानते हैं कि 108 अंक इतना खास क्यों है।

ज्योतिषीय गणना का आधार

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, 108 का अंक पूरे ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष में कुल 12 राशियां (मेष, वृषभ, मिथुन आदि) और 9 ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल आदि) होते हैं। जब इन 12 राशियों को 9 ग्रहों से गुणा किया जाता है, तो गुणनफल 108 आता है। यह संख्या सभी ग्रहों और राशियों के संयुक्त प्रभाव को दर्शाती है, इसलिए 108 बार मंत्र जाप करने से सभी ग्रहों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इसके अलावा, ज्योतिष में 27 नक्षत्रों का भी वर्णन है। प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं। जब 27 को 4 से गुणा किया जाता है, तो भी परिणाम 108 ही आता है। इस तरह, 108 मनकों की माला पूरे नक्षत्र मंडल का प्रतीक बन जाती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और 108 का संबंध

आश्चर्यजनक रूप से, 108 का अंक प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान से भी जुड़ा है, जिसके तथ्य आधुनिक विज्ञान से मेल खाते हैं।

  • सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग 108 गुना है।
  • पृथ्वी से सूर्य की दूरी भी सूर्य के व्यास की लगभग 108 गुना है।
  • इसी तरह, पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी चंद्रमा के व्यास की लगभग 108 गुना है।

यह ब्रह्मांडीय सामंजस्य 108 के अंक को एक विशेष स्थान देता है, जो सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा के बीच संतुलन का प्रतीक है।

आध्यात्मिक और शारीरिक महत्व

योग और अध्यात्म में भी 108 का गहरा महत्व है। माना जाता है कि एक स्वस्थ व्यक्ति 24 घंटे में लगभग 21,600 बार सांस लेता है। इसमें से 12 घंटे दिन के (10,800 सांसें) और 12 घंटे रात के (10,800 सांसें) होते हैं। कहा जाता है कि एक व्यक्ति को अपनी 10,800 सांसों में से कुछ समय ईश्वर की भक्ति के लिए समर्पित करना चाहिए, और इसी का प्रतीक 108 है।

आयुर्वेद के अनुसार, मानव शरीर में 108 मर्म स्थान (अति संवेदनशील बिंदु) होते हैं, जहां प्राण ऊर्जा केंद्रित होती है। वहीं, तंत्र शास्त्र के अनुसार, हृदय चक्र से 108 नाड़ियां या ऊर्जा रेखाएं पूरे शरीर में फैलती हैं। संस्कृत वर्णमाला में भी 54 अक्षर हैं, जिनके स्त्री (शक्ति) और पुरुष (शिव) स्वरूप को मिलाकर यह संख्या 108 हो जाती है।

माला का 109वां मनका: सुमेरु

जाप माला में 108 मनकों के अलावा एक अतिरिक्त मनका भी होता है, जिसे ‘सुमेरु’ या ‘गुरु मनका’ कहा जाता है। यह माला का शुरुआती और अंतिम बिंदु होता है। जाप करते समय सुमेरु को लांघा नहीं जाता, बल्कि 108 मनके पूरे होने पर माला को घुमाकर वापस जाप शुरू किया जाता है। यह गुरु के प्रति सम्मान और सीमा का प्रतीक है।