temples की आमदनी पर टैक्स क्यों नहीं ?

 

लेखक- राकेश अचल

कर्नाटक में मंदिरों ( temples ) की आमदनी पर टैक्स लगाने का एक विधेयक राज्य विधानसभा में पारित नहीं हो पाया। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है इसलिए भाजपा ने इस विधेयक की मुखालफत की। विधेयक का नाम हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक था विपक्ष इस बिल का विरोध करता आ रहा है। भाजपा और जेडीएस का आरोप है कि सरकार मंदिरों पर टैक्स लगाकर अपने खाली खजाने को भरना चाहती है। वहीं, कांग्रेस सरकार का दावा है कि 2011 में भाजपा सरकार भी ऐसा ही विधेयक लेकर आई थी।

मंदिरों ( temples ) पर टैक्स गैरकानूनी कैसे

असल सवाल ये है कि मंदिरों ( temples ) की आमदनी पर टैक्स क्यों नहीं लगना चाहिए ? जब मंदिरों को अकूत आमदनी होती है तो उस पर टैक्स लगाया जाना गैर कानूनी कैसे हो सकता है । इसे अधार्मिक मानने वालों के पास भी कोई तर्क नहीं है । वे केवल धर्मांध होकर अपना विरोध जताने में लग जाते हैं। हमारे देश में मंदिरों की आमदनी इतनी है कि कोई अच्छा-खासा कारखाना भी उनके सामने नहीं टिक सकता,लेकिन इस आमदनी पर मंदिरों से टैक्स वसूलने की बात की जाये तो बवंडर खड़ा हो जाता है । मंदिर नया हो या पुराना इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हाल ही में अयोध्या में बनाये गए राम मंदिर की आमदनी ने भी नए कीर्तिमान बना लिए हैं।
अयोध्या में भाजपा के राम मंदिर उद्घाटन के बाद एक महीने में 25 किलोग्राम सोने और चांदी के आभूषण सहित लगभग 25 करोड़ रुपये का दान मिला है। राम मंदिर ट्रस्ट के कार्यालय प्रभारी प्रकाश गुप्ता ने बताया कि 25 करोड़ रुपये की राशि में चेक, ड्राफ्ट और मंदिर ट्रस्ट के कार्यालय में जमा की गई नकदी के साथ-साथ दान पेटियों में जमा राशि भी शामिल है। उन्होंने बताया कि हालांकि हमें ट्रस्ट के बैंक खातों में ऑनलाइन माध्यम से भेजे गए धन के बारे में जानकारी नहीं है। 23 जनवरी से अब तक लगभग 60 लाख श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। राम भक्तों की भक्ति ऐसी है कि वे रामलला के लिए चांदी और सोने से बनी वस्तुएं दान कर रहे हैं, जिनका उपयोग श्री राम जन्मभूमि मंदिर में नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद, भक्तों की भक्ति को देखते हुए राम मंदिर ट्रस्ट सोने और चांदी से बनी सामग्री,आभूषण, बर्तन और दान स्वीकार कर रहा है।

कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1997 है, जिसमें संशोधन के लिए यह विधेयक लाया गया। विधेयक के जरिए अधिनयिम की धारा 17 में संशोधनकिया जाना था । इस कानून की धारा 17 में फंड के लिए एक सामान्य पूल बनाने का प्रावधान है। कर्नाटक सरकार के अनुसार, 2011 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने कानून में संशोधन किया था। इस बदलाव के जरिए सामान्य पूल फंड का उपयोग करके कम आय वाले मंदिरों की मदद करने के लिए अधिक आय के मंदिरों से धन इक_ा करने में सक्षम बनाया गया। बता दें कि कम आय वाले मंदिरों को सी श्रेणी जबकि अधिक आय वाले को ए श्रेणी में रखा गया है। सरकार के अनुसार, 2011 के संशोधन के जरिए पांच लाख रुपये से 10 लाख रुपये के बीच वार्षिक आय वाले मंदिरों को अपनी शुद्ध आय का पांच फीसदी हिस्सा देना होता है। वहीं ऐसे मंदिर जिनकी वार्षिक आय 10 लाख रुपये से ज्यादा है तो उसे 10 फीसदी हिस्सेदारी देनी होती है।

सवाल ये है जब मंदिरों की सम्पत्ति और स्वामित्व के विवादों में भगवान को अदालतों में पक्षकार बनाया जाता है तो उनकी आमदनी को कर मुक्त करने की बात क्यों की जाती है ? वैसे तो आस्थाओं के सामने कोई तर्क टिकता नहीं किन्तु हकीकत ये है कि मंदिरों को बिना हाथ-पांव चलाये जितनी आमदनी होती है उसका इस्तेमाल भगवान कम उनके आसपास रहने वाले लोग ज्यादा करते है। मंदिरों की आमदनी का उपयोग काम दुरूपयोग ज्यादा होता है वो भी धर्म की आड़ में।
भारत में मंदिरों की आमदनी अविश्वसनीय है। भारत का सबसे अमीर मंदिर पद्मनाभस्वामी मंदिर है। जो केरल के प्रसिद्ध शहर तिरुवनंतपुरम में स्थित है। यह न सिर्फ भारत बल्कि विश्व का सबसे अमीर टेम्पल माना जाता है। लोग अनुमान लगाते है कि पद्मनाभस्वामी टेम्पल में 1 खरब डॉलर की संपत्ति मौजूद है। तिरुपति के बालाजी मंदिर को हर साल लगभग 600 करोड़ रुपये दान के रूप में देते हैं। वर्ष 2010 में तिरुमाला तिरुपति मंदिर ने भारतीय स्टेट बैंक के पास ब्याज के लिए 1175 किलो सोना जमा था।

शिरडी, में साईंबाबा मंदिर के बैंक खाते में 380 किलो सोना, 4,428 किलो चांदी और डॉलर और पाउंड जैसी विदेशी मुद्राओं के रूप में बड़ी मात्रा में धन के साथ-साथ लगभग 1,800 करोड़ रुपये हैं। 2017 में रामनवमी के अवसर पर एक अज्ञात भक्त द्वारा 12 किलो सोना दान किया गया था। साथ ही, हर साल लगभग 350 करोड़ का दान आता है।वैष्णो देवी मंदिर को हर साल रुपये 500 की वार्षिक आय होती है।मुंबई में सिद्धिविनायक मंदिर सालाना लगभग 125 करोड़ कमाता है। करोड़ों कमाने वाले मंदिरों की लम्बी फेहरिस्त है। देश में छोटे-बड़े पांच लाख से अधिक मंदिर हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिनमने भगवान के भोग-प्रसाद और पुजारी का वेतन लायक तक पैसा नहीं आता।

मंदिरों को होने वाली आमदनी में से कुछ मंदिरों के न्यास समाज सेवा के नाम पर कुछ अस्पताल,शैक्षणिक संसथान भी चलते हैं लेकिन अधिकाँश का खर्च भोजन-भंडारों और मंदिरों के रख-रखाव के नाम पर ही होता है। अब तो डबल इंजिन की सरकारें इन मंदिरों पर मेहरबान है। वे अपने खजाने खाली कर प्राचीन मंदिरों को पर्यटक स्थल बनाने में लगी हैं ,ताकि वहां से बाद में सरकार को भी आमदनी हो सके। उत्तर प्रदेश सरकार का सपना ही अयोध्या के राम मंदिर के जरिये पर्यटकों की जेब से सलाना 25 हजार करोड़ निकलवाने का है। मंदिरों को परोक्ष कारोबारी संसथान बनाने वाली भाजपा शायद इसीलिए मंदिरों की आमदनी पर करारोपण का विरोध करती है।

मंदिरों पर टैक्स लगाने से जन भावनाएं कैसे आहत होतीं हैं ,मै नहीं जानता ,दूसरे धर्मों के पूजाघरों में भी यदि इस तरह की आय होती है तो उसे कराधान के दायरे में लिए जाना चाहिए ,लेकिन ऐसा होता नहीं है। सरकारें वोट के लालच में ऐसा करना नहीं चाहती । वे मध्यमवर्ग के लोगों की जेब से जबरन टैक्स काट लेतीं है किन्तु मंदिरों की आमदनी पर हाथ डालने से कतरातीं हैं। यदि मंदिरों में बैठे भगवान के विग्रह अदालतों में पक्षकार बन सकते हैं तो उन्हें कर देने में क्या आपत्ति हो सकती है ? यदि होती है तो ये छल है ,क्योंकि उनकी आमदनी तो एकदम श्वेत नहीं है । श्याम भी है। लेने वाले तो भगवान हैं लेकिन देने वाले अंतर्ध्यान है।
मंदिरों में महंगे और बड़े दान देने वाले यदि छंटे जाएँ तो वे ही सबसे बड़े कर अपवंचक निकलेंगे। मंदिरों में मंहगा चढ़ावा चढाने वाले शृद्धा से नहीं बल्कि रिश्वत के रूप में ये चढ़ावा देते है। मेरे एक परिचित दवा व्यवसायी अपनी आमदनी का दस प्रतिशत नियमित रूप से एक मंदिर में दान करते हैं लेकिन कर अपवंचन में उन्हें कभी कोई लज्जा नहीं आती। ऐसे करचोर भक्तों की संख्या बहुत है। इनके लिए मंदिरों में विशिष्ट और अति विशिष्ट सुविधाएं भी उपलब्ध रहतीं हैं। मुझे कभी-कभी लगता है की मंदिरों की आय को कर मुक्त रखने की मांग करने वाले भी ऐसे ही लोग और संगठन होते हैं। सरकार को कर देने से कोई मंदिर या मंदिर के गर्भगृह में बैठे भगवान निर्धन नहीं हो सकते। मंदिरों की आय से यदि चुटकी भर टैक्स सरकारों को मिल जाएगा तो इसे भगवत कृपा ही माना जाना चाहिए न की धर्मविरोधी कृत्य। लेकिन ऐसा हो नहीं सकता।

मुझे पता है कि देश में भगवान को कर छूट दिलाने की वकालत करने वाले हम जैसे लोगों के मुकाबले हजार गुना ज्यादा होंगे। ज्यादतर लोग भगवान के समर्थक हैं ,सरकार के नहीं। लोग उन्हीं सरकारों के समर्थक हैं जो असल मुद्दों पर काम न कर मंदिरों के लिए नए लोक-परलोक बनाने में अपना खजाना खाली करने के लिए तैयार दिखाई देती हैं। भगवान भी जब तक खुद प्रगतिशील कदम नहीं उठाएंगे तब तक स्थितियां सुधरेंगी नहीं। मंदिरों की आमदनी पर धर्म के ठेकदार ,ट्रस्टी,संत,महंत , मंडलेश्वर ,महामंडलेश्वर ही नहीं मौलवी,तथा फादर भी मजे करते रहेंगे। जय सियाराम।

(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं)