कभी भारत सरकार की शान माने जाने वाली BSNL (भारत संचार निगम लिमिटेड) अब गहरे संकट से जूझ रही है। उसका नेटवर्क इतना खराब हो गया है कि अब उस पर पुलिस विभाग जैसे अहम संस्थान का भरोसा भी उठ चुका है। मध्य प्रदेश पुलिस ने BSNL से मुंह मोड़ लिया है और करीब 80,000 पुलिसकर्मियों की सिम एयरटेल नेटवर्क में पोर्ट की जा रही है।
ग्वालियर की बात करें तो वहां 2000 से ज्यादा पुलिसकर्मी BSNL की CUG सिम का इस्तेमाल कर रहे थे, लेकिन अब वहां भी बदलाव की बयार बह रही है। करीब 1000 नई एयरटेल सिम आ चुकी हैं और इन्हें पुलिस कंट्रोल रूम की वायरलेस शाखा से तेजी से बांटा जा रहा है।
नेटवर्क नहीं, सिर्फ नाम का सहारा
श्योपुर, उज्जैन, भिंड, घाटीगांव जैसे जिलों और थानों में तो हालात इतने खराब हैं कि सिर्फ नेटवर्क ही नहीं, इंटरनेट का नामोनिशान भी नहीं मिलता। पुलिसकर्मियों को मजबूरी में अपने निजी नंबरों से कॉल करना पड़ता है, भले ही उनके पास सरकारी CUG सिम हो।
नया कानून, नई ज़रूरतें – BSNL पीछे छूट गया
2024 में आए नए क्रिमिनल लॉ के बाद डिजिटल साक्ष्यों का ऑन-द-स्पॉट अपलोड अब पुलिस की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। ई-विवेचना ऐप, सीसीटीवी फुटेज, और केस डायरी अब फाइलों में नहीं, डेटा में दर्ज होती है। और जब नेटवर्क ही न हो, तो कानून का पालन कैसे हो? इसको लेकर अब पुलिस विभाग का बीएसएनएल से मोह टुट रहा है।
निजी कंपनियों के आगे पस्त BSNL
जब जियो और एयरटेल जैसी निजी कंपनियां 5G की रेस में आगे निकल चुकी हैं, BSNL अब भी कई इलाकों में 2G और 3G पर अटका पड़ा है। एक फोटो भेजना हो या वीडियो अपलोड करना हो जाता है । ऐसे में पुलिसकर्मी यदि डेटा के लिए झुझते हुए रहते है तो पुलिसकर्मीयों का मोह भंग होना स्वाभाविक है।
फिर भी सरकार ने नहीं छोड़ा BSNL का हाथ
मोदी सरकार ने BSNL को खड़ा करने के लिए अब तक तीन बड़े रिवाइवल पैकेज दिए हैं। लेकिन 2019 में ₹69,000 करोड़, जिसमें VRS स्कीम के तहत 93,000 कर्मचारियों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली। 2022 में ₹1.64 लाख करोड़ का पैकेज सरकार ने 4G विस्तार और बैलेंस शीट मजबूत करने के लिए दिया इसके बाद 2023 में ₹89,000 करोड़, जिसमें 5G स्पेक्ट्रम और FTTH सेवाएं शामिल थीं। के लिए दिया। जिसके चलते 2024 तक BSNL ने 62,000 से ज्यादा 4G टावर खड़े कर दिए थे, और 2025 जून तक सभी चालू हो चुके हैं। इसके बाद कंपनी अब National WiFi Roaming, BiTV और FTTH ग्राहकों के लिए IFTV जैसी आधुनिक सेवाएं भी दे रही है। जहां बीएसएनएल का लक्ष्य है कि 2025 के अंत तक मोबाइल मार्केट में BSNL की हिस्सेदारी 25% तक पहुंच जाए। लेकिन ऐसे में यदि पुलिसविभाग ही बीएसएनएल से मुंह मोड़ लेगा तो सरकारी कंपनी कैसे मार्केट में टिक पाएंगी।
VIP का दर्जा, लेकिन नेटवर्क फेल
BSNL को सरकारी विभागों में “VIP टेलीकॉम सर्विस” के रूप में माना जाता था, और पुलिस को भी वही सिम दी जाती थी। मगर अब विभाग की कार्यप्रणाली बदल रही है, और BSNL की पुरानी तकनीक इस रफ्तार के साथ नहीं चल पा रही।
राजनीति भी गरमाई
कांग्रेस ने इस बदलाव का विरोध किया है, और इसे निजी टेलीकॉम कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाला कदम बताया है। पार्टी का कहना है कि यह सरकारी संपत्तियों और सेवाओं को धीरे-धीरे निजी हाथों में सौंपने की एक सोची-समझी रणनीति है।
ग्राहकों का भरोसा कैसे रहेगा कायम
पुलिस विभाग का इसतरह से BSNL से दूरी बनाना यह दर्शा रहा है कि क्या वाकई बीएसएनएल दम तोड़ रहा है। निजी कंपनियों के सामने देश की पहली टेलीकाम कंपनी दम तोड़ देंगी। सरकार निजीकरण के दौर में बीएसएनएल को भी बेच देंगी। ऐसे कई सवाल अब विपक्ष उठा सकता है।