ग्वालियर में सिंधिया के कमबैक से मध्यप्रदेश में बीजेपी दो गुटों में बंटती नजर आ रही है। सिंधिया की समीक्षा से 3 दिन पहले ही सांसद भरत कुशवाहा ने भी शहर के विकास कार्यों पर बैठक बुलाई थी। एक समय था, जब सिंधिया कांग्रेस सरकार का हिस्सा थे और उनकी मर्जी के बिना ग्वालियर में एक पत्ता तक नहीं हिलता था। विगत दिनों सिंधिया ने फिर से बैठक की। बीजेपी सांसद के रूप में ग्वालियर कलेक्टोरेट में यह सिंधिया की पहली बैठक थी। इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि ग्वालियर में “महाराजा युग” फिर से वापस आ सकता है।
ग्वालियर की सियासत में सिंधिया की वापसी
ग्वालियर हमेशा से सिंधिया का गढ़ रहा है। ऐसे में ग्वालियर में सिंधिया की एंट्री महज एक इत्तेफाक नहीं है। यह माना जा रहा है कि सीएम मोहन, संघ सुप्रीमों भागवत समेत केंद्रीय नेतृत्व ने सिंधिया को ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में फिर से अपना प्रभुत्व स्थापित करने का आदेश दिया है। इसी कड़ी में सिंधिया ने फिर अपने गढ़ पर धावा बोल दिया है। इससे पहले भी सिंधिया कई बार अपने भाषण में ग्वालियर का जिक्र कर चुके हैं। सिंधिया के कड़े समर्थक माने जाने वाले एमपी के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने मंत्रिमंडल की बैठक में कहा था, “ग्वालियर नरक में तब्दील हो चुका है।”
सिंधिया के दौरे पर उठे सवाल
ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय मंत्री हैं और वो मध्य प्रदेश की गुना-शिवपुरी सीट से सांसद हैं। ऐसे में ग्वालियर के विकास कार्यों की समीक्षा में सिंधिया का क्या काम? यह सवाल खुद बीजेपी के भीतर उठ रहा है। सिंधिया की बैठक में ग्वालियर के सांसद भरत सिंह कुशवाहा की खाली कुर्सी इसका सबूत है। हालांकि, मध्य प्रदेश बीजेपी में ही सिंधिया की वापसी को लेकर नेताओं के अलग-अलग मत सामने आ रहे हैं। ग्वालियर के सांसद भरत सिंह कुशवाहा ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि ग्वालियर में ज्योतिरादित्य सिंधिया की वापसी से मध्य प्रदेश की राजनीति में हलचल है। केंद्रीय मंत्री ने शहर के विकास कार्यों की समीक्षा की जिससे उनके ग्वालियर दौरे पर सवाल उठ रहे हैं। गुना-शिवपुरी के सांसद होने के बावजूद ग्वालियर में उनकी सक्रियता बीजेपी नेताओं के बीच चर्चा का विषय माना जा रहा है।
चर्चित चेहरा है सिंधिया
कभी मध्य प्रदेश की राजनीति का चर्चित चेहरा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले कुछ समय से दिल्ली के होकर रह गए हैं। केंद्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने लोकप्रियता को हासिल किया, लेकिन मध्य प्रदेश से दूरी बनाने के कारण राज्य में उनकी सियासी जमीन कमजोर पड़ने लगी थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने शायद यह बात भांप ली और एक बार फिर सूबे में शानदार वापसी की है।कि सिंधिया को ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में फिर से प्रभुत्व स्थापित करने का आदेश मिला है।