सोशल मीडिया पर पिछड़ा वर्ग आरक्षण का गलत प्रचार, पोस्ट करने वालों पर गिरेगी गाज

मध्यप्रदेश शासन ने पिछड़ा वर्ग आरक्षण को लेकर प्रस्तुत हलफनामें में जो जानकारी दी है उससे अलग कुछ जानकारी को शरारती तत्व हलफनामें में बता कर गलत पोस्ट सोशल मीडिया पर कर रहे है। इसकों लेकर राज्य शासन ने आपत्ति लेकर शरारती तत्वों पर कार्रवाई करने के संकेत दिए है। राज्य शासन ने एक प्रेस विज्ञप्ति निकाल कर इस बारें में स्पष्टीकरण दिया है कि सोशल मीडिया पर पिछड़ा वर्ग आरक्षण को लेकर जो भी सामग्री वायरल कि जा रही है वह टिप्पणिया माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्ततु मध्यप्रदेश शासन के ओबीसी आरक्षण से सबंधित प्रकरण के हलफनामे का भाग है।
शासन द्वारा उक्त शरारती सामग्री का गंभीरता से परीक्षण कराया गया हैI माननीय उच्चतम न्यायालय केसमक्ष पिछड़ा वर्ग आरक्षण के प्रचिलत प्रकरण में अभिलेख की प्रारंभिक जांच में यह तथ्य सामने आया है कि उल्लेखित सोशल मीडिया की वायरल टिप्पणीयां व कथन पूर्णतः गलत है। शरारती तत्वों के द्वारा शासन के हलफनामें का गलत झूठा और भ्रामक प्रचार वायरल किया जा रहा है।

रामजी महाराज के प्रतिवेदन का है हिस्सा
राज्य शासन ने यह स्पष्ट किया है कि वायरल कि जा रही सामग्री मध्यप्रदेश शासन के हलफनामे में उल्लेखित नहीं है एवं ना ही राज्य कि किसी घोषित या स्वीकृत नीति अथवा निणर्य का भाग हैं। प्रथम दृष्टया यह ज्ञात हुआ है कि उल्लेखित सामग्री  मध्यप्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग, अध्यक्ष रामजी महाजन द्वारा प्रस्तुत अंतिम प्रितवेदन (भाग-1) का हिस्सा हैं।उक्त आयोग का गठन दिनांक 17-11-1980 को किया  था। आयोग द्वारा दिनांक 22-12-1983 को अपना अंतिम प्रतिवेदन तत्कालीन राज्य शासन को प्रेषित किया था। इसके बाद राज्य शासन ने माननीय उच्चतम न्यायालय में ओबीसी आरक्षण संबिधित प्रकरण में राज्य  पिछड़ा वर्ग आयोग के विभिन्न प्रतिवेदन भी प्रस्ततु किए हैं, जो शासन के अभिलेखों में सुरक्षित हैं। इन प्रतिवेदनों में महाजन आयोग कि रिपोर्ट के साथ 1994 से 2011 तक के वार्षिक प्रतिवेदन तथा वर्ष 2022 का राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का प्रतिवेदन भी महाराज आयोग का उक्त प्रतिवेदन माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष भी अभिलेख का भाग रहा है। अतः माननीय उच्चतम न्यायालय में भी उक्त प्रतिवेदन स्वतः ही न्यायिक अभिलेख का हिस्सा है।

शासन के हलफनामें में नहीं
मध्यप्रदेश सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’एवं सामाजिक सद्भावना के प्रति पूणर्तः प्रतिबद्ध है शासन स्पष्ट करता हैकि वायरल कि जा रही सामग्री शासन के हलफनामे में उल्लेखित नहीं है। एवं ना ही राज्य शासन के किसी स्वीकृत या अधिकारिक  नीति या निर्णय का हिस्सा है। यह उल्लेखनीय हैकि महाजन रिपोर्ट र्में 35% आरक्षण
की अनशंसा की गई थी। जबकि राज्य शासन ने 27% आरक्षण लागू किया है। इससे यह स्पष्ट होता हैकि राज्य शासन का निर्णय महाजन रिपोर्ट पर आधारित नहीं है।

प्रतिवेदन पेश करते है कई विशेषज्ञ
भारत में आरक्षण को लेकर विभिन्न विशेषज्ञ समितिया अपने प्रतिवेदन समय- समय पर गठित आयोग के रिपोर्ट एंव वार्षिक प्रतिवेदन तथा अन्य अधिकारिक सामग्री जो पूर्व से ही शासन के अभिलेखों का भाग है एंव विभिन्न प्रकरणों के अभिलेखों का भी भाग है न्यायालय के समक्ष हमेशा प्रस्तुत की जाती रहती है।

कार्रवाई की चेतावनी
ऐसे एकेडिमक विश्लेषण एवं समय-समय पर गठित विभिन्न विशेषज्ञ समितियों के अत्यंत विस्तृत विश्लेषण प्रतिवेदनों एवं समय-समय पर गठित विभिन्न विशेषज्ञ समितियों के विस्तृत प्रतिवेदनों एंव रिपोर्ट के किसी एक भाग को, बिना किसी संदर्भ के स्पष्ट किए सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार के रूप में प्रस्तुत किया जाना एक निंदनीय प्रयास हैI  इसके संबंध में राज्य शासन द्वारा गंभीरता से जांच कर आवश्यक कार्रवाई की जाएंगी।

वायरल पोस्ट करने से पहले करें कंफर्म
राज्य शासन के इस प्रेस नोट से इस बात की जहां शरारती तत्वों को चेतावनी दी गई है वहीं आम जनता को भी सूचित किया गया है कि पिछड़ा वर्ग आरक्षण को लेकर किसी भी वायरल पोस्ट को सही मान कर किसी तरह की प्रतिक्रिया ना दें।