मध्यप्रदेश के सीहोर जिले की सीमा पर स्थित एक ऐसा किला जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। ये किला घने जंगलों और ऊँची पहाड़ियों के बीच बसा है। जी हा! हम बात कर रहे है गिन्नौरगढ़ किले की। यह किला भोपाल से लगभग 65 किलोमीटर दूर है । देलावाड़ी के जंगलों में स्थित यह किला रत्नापानी टाइगर रिज़र्व के अंतर्गत आता है। इस किले में इतिहास, प्राकृतिक सौंदर्य और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम देखा जा सकता है। यह किला पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
गिन्नौरगढ किला और इतिहास
गिन्नौरगढ़ किले का निर्माण परमार वंश के राजाओं ने करवाया था। इसके बाद निज़ाम शाह ने इस किले का पुनर्नवीकरण किया और इसे अपनी राजधानी बनाया।ऐसा कहा जाता है कि यही से गौंड शासन की नींव रखी गई। इस किले में राजा गौंड शाह अपनी सात रानियों के साथ रहते थे।इन सभी रानियों में ,रानी कमलापति प्रमुख थीं। उन्हीं के नाम पर भोपाल के रेलवे स्टेशन का नाम “रानी कमलापति रेलवे स्टेशन ” रखा गया है ।
इतिहासकारों की माने ,तो इस किले की स्थापना लगभग 800 वर्ष पूर्व हुई थी। यह किला कई शासको के शासन काल का गवाह रहा है। इस किले पर परमार, गौंड, मुगल और पठान शासकों ने भी शासन किया। यह किला ऐतिहासिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण रहा ही है साथ ही रणनीतिक दृष्टिकोण से भी इसका बहुत महत्व है।
वास्तुकला और बनावट
यह किला समुद्र तल से 1975 फीट की ऊँचाई पर है। विंध्याचल की पहाड़ियों में बसे इस किले की बनावट बेहद अनोखी और भव्य है। लगभग 3696 फीट लंबाई और 874 फीट चौड़ाई में फैला है यह किला – बाहरी परकोटा,आवासीय क्षेत्र और मुख्य किला परिसर इन तीन भागों में विभाजित है।