तब मंत्रों का जप आपको तबाह भी कर सकता है

ईश्वर की पूजा आराधना और जब ध्यान करना हो तो राम, शिव, राधेकृष्ण, भगवते वासदेवाय या नम: शिवाय जैसे नाम अथवा सहज मंत्र ही काफी हैं। किसी और मंत्र, बीज मंत्र या वैदिक मंत्र की महिमा सुन पढ़ कर मनमाने ढंग से जप करने लगना ठीक नहीं है।
उनका या तो कोई असर नहीं होता अथवा कई बार उलटा असर भी हो जाता है। मंत्र-तंत्र अनुसंधान केंद्र के निदेशक पं-गोविद शास्त्री का मानना है कि किसी मंत्र का जप, साधन या अनुष्ठान अपने आप करना ही नहीं चाहिए।
वैदिक और तांत्रिक मंत्रों का तो कतई नहीं। शास्त्रीजी ने पैंतीस वर्ष से अधिक समय तक इस काम को करने आद और इससे प्राप्त अनुभवों के आधार पर अपने मत को सिद्ध किया है।
उनके अनुसार वैदिक ध्वनियों की संख्या 64 है इन ध्वनियों में स्वर व्यंजन और बलाघातों एवं बदलती रहने वाली ध्वनियां और उनके संकेत को बताने वाले स्वर व्यंजन शामिल हैं।
ऐसे स्वर व्यंजनों की संख्या 64 है। अब इनमें से 51 स्वर व्यंजन ही पहचाने जाते हैं। 1965 के बाद इनमें तेजी से कमी आई है। और वे 45 या 47 ही रह गए हैं। बिना योग्य गुरु के बताए किए जाने वाले मंत्रों के लिए सख्ती से मनाही के साथ एक तथ्य का उदाहरण दिया जाता है। उनका कहना है कि प्रणव या ओम का जप तो गृहस्थ साधको को बिलकुल नहीं करना चाहिए।
क्लीव, उभय और अद्वैत बीजमंत्र के रूप में विख्यात इस मंत्र के बारे में अनुभव है कि यह परमात्म चेतना से इतनी तेजी से संबंद्ध करता है कि व्यक्ति दुनियादार बिलकुल नहीं रह जाता।
यह अद्वैत मंत्र है इसलिए साधक को भी अकेला कर देता है और संसारी रहने के लिए जिस कौशल और व्यवहार की जरूरत होती है, उन्हें भी अपने प्रभाव में लीन कर लेता या निगल जाता हैं।
अध्ययन अनुसंधान के आधार पर शास्त्रीजी ने उदाहरणों सहित बताया है कि मनुष्य के स्वर तंत्र ऐसे नहीं रह गए कि वे 64 या 51 वर्णों से बने मंत्रों का सही सही उच्चारण कर सकें।
मानस जप में भले ही स्वरतंत्रों की स्फुट उपयोग न होता हो लेकिन उनकी मूक भूमिका तो रहती ही हैं। इसलिए योग्य गुरु के बताए बिना किसी मंत्र का जप नहीं करना चाहिए। बीज मंत्रों का तो कतई नहीं।