मुझे पेड़ नहीं मिलते अब गुनगुनाने को,मेरा दिल नहीं करता अब चहचहाने को
ललितपुर -: आर्गेनाइजेशन :याद कीजिये, अंतिम बार आपने गौरैया को अपने आंगन या आसपास कब चीं-चीं करते देखा था। कब वो आपके पैरों के पास फुदक कर उड़ गई थी। सवाल जटिल है, पर जवाब तो देना ही पड़ेगा। इसी जटिल सवाल को हल करने के लिए 20 मार्च को मानव आर्गेनाइजेशन के गौरैया बचाओ अभियान के अंतर्गत नेहरू महाविद्यालय परिसर में डॉ.ओमप्रकाश शास्त्री जी की अध्यक्षता में विश्व गौरैया दिवस मनाया गया।शास्त्री जी ने गौरैया के पौराणिक महत्व का वर्णन करते हुए बताया कि गौरैया को भगवान राम का प्रिय बताया गया है
गौरैया पवित्र जानवरों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है ,जो घर परिवार को सदैव प्रगति के पथ पर रह जाती है। गौरैया बचाओ अभियान के साथी पर्यावरणविद् पुष्पेन्द्र सिंह चौहान ने बताया कि दुनिया में गौरैया की 24 ज्ञात किस्में हैं। वर्षों से, उनकी आबादी में भारी कमी आई है। यह, यहां तक कि साक्ष्य के रूप में सामने आता है कि अपने 10,000 वर्षों के दस्तावेजी अस्तित्व में, हाउस स्पैरो ( पासर डोमेस्टिकस ) – भारत में सबसे अधिक पाई जाने वाली किस्म – मानव विकासवादी पैटर्न से मेल खाने के लिए आश्चर्यजनक तरीके से विकसित हुई है। यह न केवल मानव बस्तियों के करीब रहती है, इसके जीन भी विकसित हुए हैं जो इसके शरीर को मानव-निर्मित भोजन खाने और पचाने में सक्षम बनाते हैं।
महाविद्यालय के प्रवक्ता डॉ राजीव कुमार निरंजन के नेतृत्व में राष्ट्रीय सेवा योजना की समस्त इकाई व स्काउट एंड गाइड के सदस्यों ने परिसर में पीपल वृक्ष के ऊपर गौरैया कॉलोनी को स्थापित किया और महाविद्यालय परिसर में सैकड़ों गौरैया आवास स्थापित किए। डॉ. निरंजन ने बताया कि कुछ रिपोर्टें भारत की गौरैया आबादी में 80 प्रतिशत की गिरावट का सुझाव देती हैं ।
इस गिरावट का एक प्रमुख कारण हमारी बदलती शहरी जीवन शैली है, जो आवास विनाश का कारण बनती है। गौरैया जंगलों या वुडलैंड्स में प्राकृतिक रूप से घोंसले बनाने वाली जगहों के बजाय मानव निर्मित संरचनाओं की दरारों और छिद्रों में रहना पसंद करती हैं। आधुनिक इमारतें, जो अक्सर कांच से बनी होती हैं, या दुर्गम घर जो ज्यादातर जालीदार होते हैं, गुहाओं से रहित होते हैं जो गौरैया के लिए उपयुक्त घोंसला बनाने की जगह प्रदान करते हैं।
साथ ही, हम जिन कंक्रीट के जंगलों में रहते हैं, उनमें हरे-भरे स्थानों और घोंसले बनाने, खिलाने, प्रजनन करने और बसेरा (अर्थात् संतान पैदा करने) के लिए आवश्यक देशी वृक्षों का अभाव है।इस दौरान मिशन बेटियां के डॉ जीत गुप्ता व कवि शैलेंद्र ने प्राथमिक विद्यालय लक्ष्मीपुरा में बच्चो को गौरैया संरक्षण एवं संवर्धन की शपथ दिलाई । वरिष्ठ पत्रकार अमित लखेरा ने बच्चों को चीन में हुई गौरैया के ऊपर अत्याचार की कहानी सुनाकर उसके परिणाम के बारे मे बताया।
इस दौरान डॉ सुधाकर उपाध्याय, डॉ बलराम द्विवेदी, डॉ वर्षा साहू,श्रीमती अनिता,एड राजेश पाठक,सचिन जैन,स्वतंत्र व्यास,आशुतोष सिंह चंदेल,बलराम कुशवाहा, नासिर खान,ऋषि हीरानंदानी,आकाश झा,एड प्रभाकर त्रिपाठी,कलेश परिहार,प्रशांत शुक्ला,मनीष दुबे,संजय सेन बुढ़वार,कमलेश कुशवाहा,अनुपम,गौरव जैन,अरविंद कुशवाहा,शैलेंद्र जैन,राहुल बाबा,प्रकाश कुशवाहा,कुलदीप द्विवेदी,जैकी कुशवाहा, ध्रुव जैन आदि अनेक छात्र उपस्थित रहे।