धीरज रखने वाला कमिश्नर

वरिष्ट पत्रकार/ राजेश राठौर – भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी इंदौर के संभागायुक्त डॉक्टर पवन कुमार शर्मा ने इंदौर में अपनी पदस्थापना के दौरान जिस ‘धीरज’ और सूझ-बूझ का परिचय दिया है, वह एक मिसाल है। शर्मा शीघ्र ही इंदौर से भोपाल का रुख कर सकते हैं। वजह उनका प्रमुख सचिव पर पदोन्नत होना है। जिसका आदेश शीघ्र ही संभावित है। मालवा निमाड़ के विभिन्न जिलों में विपरीत परिस्थितियों में डॉक्टर शर्मा ने बेहद सूझ-बूझ का परिचय दिया है। चाहे वह खरगोन के दंगे का समय हो खलघाट में बस डूबने की घटना हो या कारम डेम का आपदा प्रबंधन हो । उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए प्रशासनिक क्षमता को साबित किया है।

कोविड के कठिन काल में मेडिकल कॉलेज सहित संभाग के अन्य जिलों में अस्पतालों का बेहतर प्रबंधन और समन्वय उनके द्वारा किया गया है। इंदौर सहित अन्य जिलों में भी कोविड से निपटने में उन्होंने बेहतर समन्वय दिखाया था । उनका व्यवहार और कार्य पद्धति का प्रमाण है कि उस समय इंदौर और पीथमपुर से समूचे मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन की आपूर्ति संभव हो सकी और कहीं पर भी अव्यवस्थाएं निर्मित नहीं हुई। यही नहीं उन दिनों वायुयान से आने वाली अत्याधुनिक दवाओं का इंदौर से प्रदेश के विभिन्न जिलों में सुचारु वितरण संभव हो सका था। पेसा एक्ट का जिस बारीकी से क्रियान्वयन इन्दौर संभाग में हुआ है। उससे मुख्यमंत्री भी प्रसन्न हैं। मुख्यमंत्री की मालवा निमाड़ के जिलों की यात्राएं नियोजित करने में डॉक्टर शर्मा की अहम भूमिका है।

अफसर से बने कुलपति

रिटायरमेंट के बाद लोगों के बीच में अफसरों का रहना बड़ा मुश्किल हो जाता है। कई तो अपने जीवन को वनवास मानकर एकांतवास में चले जाते हैं, और कुछ ऐसे होते हैं, जो लोगों के बीच हमेशा याद रहते हैं। ऐसे ही एक आईएएस अफसर प्रमोद गुप्ता ने अपना स्थाई ठिया इंदौर को बना लिया था। अब इन दिनों फिर से सक्रिय हो गए हैं। रिटायरमेंट के बाद देश-विदेश की यात्रा करके लोटे गुप्ता एल एन सी टी यूनिवर्सिटी के कुलपति के पद पर ‘प्रमोद’ कर रहे हैं। वैसे बहुत कम नसीब वाले रिटायर्ड अफसर होते हैं। जिनको बाद में भी सम्मान की कुर्सी हासिल हो जाती है।

इनकी जनसुनवाई दूसरों के लिए सिरदर्द बनी

मप्र के इतिहास में इंदौर के पहले ऐसे कलेक्टर हैं, जो जनसुनवाई को खानापूर्ति नहीं मानते। जब जन सुनवाई होती है, तो कलेक्टर टी इलैया राजा सुबह से शाम तक एक-एक व्यक्ति की सुनवाई करते हैं। आखरी में कुर्सी से उठने के पहले पूछते हैं कि कोई और शिकायतकर्ता तो नहीं बचा। सुनवाई के साथ उसका रिजल्ट भी देते हैं। यही कारण है कि शनिवार और रविवार को अधिकांश समय अफसर छुट्टी होने के बावजूद जनसुनवाई के मामले निपटाने में लग जाते हैं, ताकि सोमवार को टाइम लिमिट की बैठक में अफसरों को नीचा नहीं देखना पड़े। वैसे कलेक्टर सौ बका एक लिखा की तर्ज पर मुंह से ज्यादा कुछ नहीं कहते, उनकी कलम की धार इतनी तेज चलती है कि अफसर उसको फाइल से हटा भी नहीं पाते हैं।

जासूस की जासूसी

अफसर के परिवार में जन्मे एक प्रमोटी अफसर के आईएएस बनने के बाद भी जासूसी करने की आदत नहीं गई। हर किसी के पीछे जासूस लगाना, छोटे कर्मचारियों और अफसरों पर दबाव बनाकर पूर्व में उस विभाग में काम कर चुके मुखिया अफसर के कारनामे पता करना उस अफसर का शगल है। जो इन दिनों भोपाल में है। पहली बार पता चला है कि इस जासूस अफसर की जासूसी भी दिल्ली से शुरू हो चुकी है, क्योंकि कुर्सी से हटते ही जिनसे भी लेनदेन किया था और जितनी जमीन खरीदी थी। उनका हिसाब किताब मिलना शुरू हो गया है।

जाते ही सरकार का खजाना भर दिया

कुछ अफसर ऐसे होते हैं जो पब्लिसिटी से दूर रहते हैं, और चुपचाप अपना काम करते रहते हैं। ना तो किसी को जलील करते हैं और ना ही किसी से कोई उम्मीद करते हैं। ऐसे ही अफसरों में शुमार कुमार पुरुषोत्तम की काम करने की स्टाइल अलग है। वो जिस भी जिले की कमान संभालते हैं, वहां पर सरकार के फायदे का काम करके गुजर जाते हैं, लेकिन हा तक नहीं मचाते। जिस तरह से गुना, रतलाम और खरगोन में शान से कप्तानी की उसी तरह से अब कुमार पुरुषोत्तम महाकाल की सेवा उज्जैन में कर रहे हैं। वीआईपी दर्शन करने वालों की तादाद लगातार बढ़ने के कारण कुमार ने जाते ही कह दिया कि सांसद, विधायक और जज के अलावा कोई भी वीआईपी आएगा तो ढाई सौ रुपए की रसीद दर्शन के लिए जरूर कटवाएगा। इस फैसले से कुछ पुजारी और नेता नाराज हो सकते हैं, लेकिन शिवराज तो खुश है कि आते ही खजाना भरना शुरू कर दिया। वीआईपी के लिए दर्शन की रसीद कटवाने से हर महीने महाकाल मंदिर के खाते में दस लाख से ज्यादा जमा होने की उम्मीद है। महाकाल मंदिर की आय बढ़ाने के लिए कुछ और तरीके कुमार पुरुषोत्तम ढूंढ रहे हैं यदि आपके पास हो तो उनको जरूर बताइएगा।